राष्ट्रकूट वंश
From जैनकोष
सामान्य-जैनागमके रचयिता आचार्यों का सम्बन्ध उनमें-से सर्व प्रथम राष्ट्रकूट राज्य वंश के साथ है जो भारत के इतिहास में अत्यन्त प्रसिद्ध है। इस वंश में चार ही राजाओं का नाम विशेष उल्लेखनीय है-जगतुङ्ग, अमोघवर्ष, अकालवर्ष और कृष्णतृतीय। उत्तर उत्तरवाला राजा अपने से पूर्व पूर्व का पुत्र था। इस वंश का राज्य मालवा प्रान्त में था। इसकी राजधानी मान्यखेट थी। पीछे से बढ़ाते-बढ़ाते इन्होंने लाट देश व अवन्ती देश को भी अपने राज्यमें मिला लिया था।
1. जगतुङ्ग-राष्ट्रकूट वंश के सर्वप्रथम राजा थे। अमोघवर्ष के पिता और इन्द्रराज के बड़े भाई थे अतः राज्य के अधिकारी यही हुए। बड़े प्रतापी थे इनके समय से पहले लाट देश में `शत्रु-भयंकर कृष्णराज' प्रथम नाम के अत्यन्त पराक्रमी और व प्रसिद्ध राजा राज्य करते थे। इनके पुत्र श्री वल्लभ गोविन्द द्वितीय कहलाते थे। राजा जगतुङ्ग ने अपने छोटे भाई इन्द्रराज की सहायता से लाट नरेश `श्रीवल्लभ' को जीतकर उसके देश पर अपना अधिकार कर लिया था, और इसलिये वे गोविन्द तृतीय की उपाधि को प्राप्त हो गये थे। इनका काल श. 716-735 (ई. 794-813) निश्चित किया गया है।
2. अमोघवर्ष-इस वंश के द्वितीय प्रसिद्ध राजा अमोघवर्ष हुये। जगतुङ्ग अर्थात् गोविन्द तृतीय के पुत्र होने के कारण गोविन्द चतुर्थ की उपाधि को प्राप्त हुये। कृष्णराज प्रथम के छोटे पुत्र ध्रुव राज अमोघ वर्ष के समकालीन थे। ध्रुवराज ने अवन्ती नरेश वत्सराज को युद्ध में परास्त करके उसके देश पर अधिकार कर लिया था जिससे उसे अभिमान हो गया और अमोघवर्ष पर भी चढ़ाई कर दी। अमोघवर्ष ने अपने चचेरे भाई कर्कराज (जगतुङ्ग के छोटे भाई इन्द्रराज का पुत्र) की सहायता से उसे जीत लिया। इनका काल वि. 871-935 (ई. 814-878) निश्चित है।
3. अकालवर्ष-वत्सराज से अवन्ति देश जीत कर अमोघवर्ष को दे दिया। कृष्णराज प्रथम के पुत्र के राज्य पर अधिकार करने के कारण यह कृष्णराज द्वितीय की उपाधि को प्राप्त हुये। अमोघवर्ष के पुत्र होने के कारण अमोघवर्ष द्वितीय भी कहलाने लगे। इनका समय ई. 878-912 निश्चित है।
4. कृष्णराज तृतीय-अकालवर्ष के पुत्र और कृष्ण तृतीय की उपाधि को प्राप्त थे।
इतिहास की अधिक जानकारी के लिये देखें इतिहास - 3.4।