लांगलिकागति
From जैनकोष
राजवार्तिक/2/28/4/139/5 क उपमार्थः। यथा पाणिना तिर्यक्प्रक्षिप्तस्य द्रव्यस्य गतिरेकविग्रहा तथा संसारिणामेकविग्रहा गतिः पाणिमुक्ता द्वैसमयिकी। लांगलमिव लांगलिका। क उपमार्थः। यथा लांगलं द्विवक्रितं तथा द्विविग्रहा गतिलंंगिलिका त्रैसमयिकी। गोमूत्रिकेव गोमूत्रिका। क उपमार्थः। यथा गोमूत्रिका बहुवक्रा तथा त्रिविग्रहा गतिर्गोमूत्रिका चातुःसमयिकी।
= ये (विग्रह) गतियाँ चार हैं–इषुगति, पाणिमुक्ता, लांगलिका और गोमूत्रिका । उनमे से एक गति का नाम लांगलिका गति है । जैसे हल में दो मोड़े होते हैं, उसी प्रकार दो मोड़ेवाली गति को लांगलिका गति कहते हैं। यह गति तीन समयवाली होती है।