लोकपूरण
From जैनकोष
केवलि-समुद्घात का चौथा चरण । केवलियों के आयुकर्म की स्थिति जब अंतर्मुहूर्त रह जाती है तथा तीन अघातिया कर्मों की स्थिति अधिक होती है तब वे दंड, कपाट, प्रतर और इसके द्वारा उन तीन अघाति कर्मों की स्थिति बराबर करते हैं । हरिवंशपुराण - 56.72-75