वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1245
From जैनकोष
आरोप्य चापं निशितै: शरौधैर्निकृत्य वैरिव्रजमुद्धताशम्।
दग्धवा पुरग्रामवराकराणि प्राप्स्येऽहमैश्वर्यमनन्यसाध्यम्।।1245।।
ऐसा विचार करना कि मैं तीक्ष्ण बाणों के समूह से उद्धत बैरियों को नष्ट करके उनके नगर ग्राम खान वैभव आदिक को दग्ध करके दूसरों के द्वारा साधन में न आये ऐसा ऐश्वर्य व निष्कंटक सज्य को करूँगा। यह रौद्रध्यान ही तो है। मैं इसका अनर्थ करके इसको मारकर इसे ठगकर मैं निष्कंटक राज्य करूँगा, वैभव भोगूँगा। राज्य के सुख भोगना यह भी रौद्रध्यान है। जैसे यह विषयसंरक्षणानंद रौद्रध्यान है वैसे ही कोई राजा-महाराजा ऐसा चिंतन करे कि मैं अमुक राजा को मिटाकर फिर निष्कंटक राज्य भोगूँगा तो इससे वह आत्मा के स्वरूप से विमुख हुआ और परवस्तुवों में आसक्त होता है। ऐसा जीवन गुजारने से जीव को लाभ कुछ नहीं मिलता, समय गुजर जाता है और परिणाम खोटे करने से जो स्थितिबंध के बंधन हो जाते हैं उनका फल भोगना पड़ता है। तो ऐसा चिंतन करते हुए भी विषयसंरक्षणानंद नामक रौद्रध्यान है। किसी से कोई विरोध हो जाय तो ऐसा संकल्प करना कि मैं इसको बरबाद कर दूँगा, फिर आनंद से ऐश्वर्य भोगूँगा, ये सब विषयसंरक्षणानंद नाम के रौद्रध्यान है। अपने आपमें यह विरोध करना चाहिए कि हम आर्तरौद्रध्यान में कितना समय बिताते हैं और आत्मरूवरूप की दृष्टि में प्रभुभक्ति में अथवा व्रत आदिक पालन में कितना समय बिताते हैं? आजकल के युग में व्रत नियम तो उपहास की चीज रह गयी। कोई व्रत करे, संयम करे, नियम से रहे तो लोग उसकी हँसी उड़ाते हैं। कहते हैं कि यह तो पुराने दिमाग का आदमी है। समय है ऐसा। एक साधारणसी बात जैसे रात्रि में अन्न न खाना। कुछ भी इसमें तकलीफ नहीं है। दिनभर पड़ा है। कितना ही खायें आखिर पेट को भी तो छुट्टी मिलना चाहिए तब तो स्वास्थ्य रहेगा तो कोई कठिन चीज नहीं है, मगर कोई-कोई रात्रि- भोजन का त्याग करके रहे और बरात में जो गोष्ठी में रहे, न खाये तो उसकी हँसी उड़ाई जाती है। कोई समय एक ऐसा था कि लोग उसकी प्रशंसा करते थे जो रात्रिभोजन का त्यागी होता था। अब तो ऐसे व्यक्ति की लोग हँसी उड़ाते हैं। तो इसमें उपहास करने वालों का दोष क्या? स्वयं ही सब लोगों में शिथिलता आ गयी जिससे वे हँसी के पात्र बन बैठे। आजकल तो लोग धन-दौलत के संचय के पीछे होड़ लगा रहे हैं। चाहे ब्लेक करना पडा, चाहे बेईमानी से धन आवे पर धन मिलना चाहिए ऐसी भावनाएँ बनी रहा करती हैं। अरे यह धन वैभव तो जितना उदय में है उतना आयगा। अन्याय करने से, बेईमानी करने से धन आता हो ऐसी बात नहीं है, वह तो सब उदय हीन है। इस ओर लोगों की दृष्टि नहीं है और अपने परिणाम बिगाड़कर धनसंचय के होड़ में आज दुनिया लग रही है, यह सब विषयसंरक्षणानंद रौद्रध्यान है।