वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1251
From जैनकोष
कृष्णलेश्याबलोपेतं श्वभ्रपातफलांकितम्।
रौद्रमेतद्धि जीवानां स्यात्यंचगुणभूमिकम्।।1251।।
रौद्रध्यान का चिन्ह क्या है? यह रौद्रध्यान कृष्णलेश्या के बल से संयुक्त है। यह सामान्यतया कथन है। रौद्रध्यान कृष्णलेश्या में भी हो सकता; नील, कपोत, पीत, पद्म इनमें भी हो सकता। जैसे पंचम गुणस्थान में रौद्रध्यान होता है और वहाँ हुई शुभ लेश्या तो इससे शुभ लेश्या के होते हुए एक साधारण रौद्रध्यान होता है। चूँकि गृहस्थी है, परिवार का संबंध है, कुछ बातचीत होती ही रहती है। इस प्रसंग में कभी खेद होता है, कभी हर्ष। तो वहाँ भी रौद्रध्यान चलता है किंतु वह साधारण। जो मिथ्यात्व करके सहित रौद्रध्यान है वह कृष्णलेश्या के फल से ही संयुक्त है और रौद्रध्यान का फल है नरक में जाना। यह भी एक प्रधानता से वर्णन है। यों तो पंचम गुणस्थान में रौद्रध्यान भी है पर साथ ही धर्मध्यान भी है। तो मिथ्यात्व सहित जो रौद्रध्यान है उसका फल है नरक में गमन। और यह पंचम गुणस्थान पर्यंत होता है। विशेषता पहिले गुणस्थान में है। पंचम गुणस्थान में धर्मध्यान की विशेषता है। पर आरंभ परिग्रह संग में ऐसा लगा हुआ है जिसके कारण कुछ-कुछ रौद्रध्यान बन जाता है गृहस्थी में।