वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1294
From जैनकोष
सिद्धक्षेत्रे महातीर्थे पुराणपुरुषाश्रिते।
कल्याणकलिते पुण्ये ध्यानसिद्धि: प्रजायते।।1294।।
जो सिद्धक्षेत्र है, जिस स्थान से अनेक महापुरुष अष्टकर्मों को नष्ट करके सिद्ध परमात्मा हुए हैं ऐसे स्थान में आसन मारकर ध्यान करने वाला पुरुष, अंतस्तत्त्व का उपयोग रखने वाला पुरुष एक विलक्षण विशुद्ध आनंद-आनंद को प्राप्त होता है, जिस स्थान पर रहकर चित्त में उन साधुसंतों की महिमा बसी रहती है उन्होंने जिस उपाय से शांति प्राप्त की, कर्मों से मुक्ति प्राप्त की वह उपाय इसके चित्त में बसा करता है जिससे हृदय विशुद्ध रहता है और विशुद्ध हृदय में आत्मतत्त्व की बात समाई जाती है अतएव सिद्धक्षेत्र जिस स्थान से साधु संतों ने तपश्चरण करके परमात्मपद प्राप्त किया है ऐसे स्थान में ध्यान की सिद्धि होती है। जिस स्थान में बड़े-बड़े तीर्थंकर रहते हैं योगी संतपुरुषों ने जहाँ निवास किया है ऐसा महातीर्थंकरों का स्थान ध्यान की सिद्धि के लिए योग्य है। उन स्थानों में रहकर चित्त में ख्याल बना रह सकता है कि यहाँ ऐसे-ऐसे महापुरुष हुए, यहाँ यह भगवान हुए थे, यहाँ इन महापुरुषों का, तीर्थंकरों का और-और भी बलभद्र आदिक महान संतजनों का निवास रहा है उनका ख्याल चित्त में रहेगा तो चित्त शुद्ध होगा। उस चित्त में फिर आत्मध्यान की सिद्धि होती है। जो पुराण पुरुषों के द्वारा आश्रित है, जहाँ आदर्श पुरुष रहा करते हैं उन स्थानों में रहने से भी चित्त की विशुद्धि जगती है, ध्यान की सिद्धि होती है। जहाँ तीर्थंकरों के कल्याणक हुए, गर्भकल्याणक, तपकल्याणक, दीक्षाकल्याणक, मोक्षकल्याण
आदि ऐसे स्थानों में ध्यान की सिद्धि होती है। तो ध्यानार्थी पुरुषों को ऐसे पुराणरूप पवित्र स्थानों में अपने आसन को जमाना चाहिए। उस आसन की बात कुछ श्लोकों के बाद आगे बतावेंगे। अभी तो ध्यान योग्य स्थानों को बताया जा रहा है और कौन-कौन से स्थान हैं, जो ध्यान के योग्य हैं जिनका ध्यान करना चाहिए?