वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1349
From जैनकोष
स्थिरी भवंति चेतांसि प्राणायामावलंबिनां।
जगद्वृतं च नि:शेषं प्रत्यक्षमिव जायते।।1349।।
प्राणायाम का आलंबन लेने वाले मुनियों का चित्त स्थिर हो जाता है। चित्त के स्थिर होने से ज्ञान विकास प्रकट होता है, फिर उसके द्वारा ज्ञान के प्रकट वृत्तांत प्रत्यक्ष के समान जान लिए जाते हैं। यह जीव अनादिकाल से विषयकषायों के विकल्पों में उलझता हुआ चला आ रहा है। ऐसा पुरुष यदि कुछ साधन मिल जाय और इस ही आत्मतत्त्व में स्थिर होने का भीतर में यत्न बन जाय तो उसके ज्ञान में भूत भविष्य वर्तमान की अनेक बातें पर्यायें प्रकट हो जाती हैं। तो प्राणायाम का आलंबन करने से इतना तक हो जाता कि पीठ पीछे का, पहिले समय का, अगले समय का जो कुछ होनहार है वह बहुत कुछ जान लिया जाता है।