वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1505
From जैनकोष
संयोजयति देहेन चिदात्मानं विमूढधी:।
बहिरात्मा ततो ज्ञानी पृथक् पश्यतिदेहिनम्।।1505।।
जो बहिरात्मा है सो तो चैतन्यस्वरूप आत्मा को देह के साथ जोड़ता है जिसके देह में आत्मबुद्धि है वह बहिरात्मा कहलाता है। अर्थात जो देह और आत्मा को एक मानते हैं वे तो हैं अज्ञानी। जो ज्ञानी है सो अंतरात्मा है और जो देह में आपा बुद्धि करता है वह है बहिरात्मा। ये बहिरात्मा और अंतरात्मा के भेद है। एक मोड़ का अंतर है। ज्ञानी पुरुष तो अपने उपयोग को अपनी तरफ लक्ष्य बनाता है और अज्ञानी पुरुष बाहर की ओर अपनी दृष्टि लगाये है― ये पुत्र मित्रादिक मेरे हैं, ये घन संपदा मेरे हैं। इस प्रकार बाह्य पदार्थों में ममत्व बुद्धि है। यह बहिरात्मा और अंतरात्मा में भेद है। जरा सी मोड़ में इतना बड़ा अंतर आ जाता है। यह बिल्कुल भिन्न मोड़ है। अपनी ओर मुड़े तो परमात्मा का दर्शन है और पर की ओर मुड़े तो बहिरात्मापन है। बहिरात्मा पुरुष बाह्य पदार्थों में अपना संबंध जोड़ताहै। ज्ञानी जीव बाह्य पदार्थों से अपना संबंध दूर करता है।