वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1676
From जैनकोष
धनाब्धिवलये लोक: स च नांते व्यवस्थित:।
तनुवातांतरे सोऽपि स चाकारो स्थित: स्वयम्।।1676।।
वायुमध्य में लोक की स्वयं स्थितता व अकृतता―यह लोक तो धनोदधि नाम के वातवलय में स्थित हैं और धनोदधि वातवलय घनवात के मध्य में है और घनवातवलय तनुवातवलय से घिरा हुआ है। ऐसा होने में किसी का कर्तव्य नहीं है। किसी ने इस लोक को बनाया हो और बनाकर उस लोक के चारों तरफ वायु बैठाल दी हो, ऐसा किसी ने किया नहीं। यह सब अनादि से प्रकृत्या अपने आप बनी हुई रचना है। मानो किसी ने यह बनाया होता तो यही बतलावो कि बनाने वाले ने भी किसी को बनाया या नहीं? अगर कहो कि बनाने वाले ने किसी को बनाया नहीं तो जैसे बनाने वाला बिना आश्रय अपने आप है तो ऐसे ही सारे पदार्थ बिना बनाये अपने आप हैं और कहो कि बनाने वाले ईश्वर को भी किसने बनाया तो उसे किसने बनाया इस तरह से उत्तर देते जावो, कहीं भागना ही न पड़ेगा और फिर मानो किसी ने बनाया तो किसी वस्तु से बनाया या कुछ था ही नहीं और एकदम यों ही बन गया। जैसे कुम्हार घड़ा बनाता है तो मिट्टी का पिंड है, जल है, कुछ चीज है उसे ले करके बनाते हैं तो इस तरह से ईश्वर ने किसी उपादान को लेकर इस लोक को बनाया है या कुछ भी न था उपादान यह लोक बन गया है? अगर कहो कि कुछ था उपादान जिससे इस लोक को बनाया गया तो लोक क्या बनाया फिर? वह तो चीज पहिले ही थी। उसका एक रूप अविस्तृत कर दिया, और आकाश कुछ भी न था और एकदम बना दिया तो उसको कोई बुद्धिमान् नहीं मान सकता कि असत् भी बन सके। कुछ भी न हो और सत् बन जाय, ऐसा कोई मान ही नहीं सकता, और भी सोचो―बनाने वाला कहां से बनाता है, जगत को किस प्रयोजन से बनाया हे, उसकी क्या मंशा है? क्या उसने इस कारण बनाया है कि उसका दिल खुश रहे या लोगों के उपकार के लिए बनाया है, या उसे कोई पीड़ा थी, वेदना थी, दु:ख था जो दु:ख को शांत करने के लिए बनाया है? किसलिए बनाया है? अगर कहो कि उसने अपना दिल खुश करने के लिए बनाया तो ये बातें तो संसारी सामान्य जनों की बातें हैं। ऐसा महान् ईश्वर क्या दु:खी था जो अपना दिल खुश करने के लिए ऐसी चीज बनाया जिससे अनेक आदमी दु:खी हों? यदि ऐसा कोई करे तो वह विवेक का काम नहीं है। कोई कहे कि उसने लोगों के उपकार के लिए बनाया तो लोगों का उपकार तो कुछ इस समय नजर आ नहीं रहा, क्योंकि कुछ जीव सुखी हैं तो उनसे अनंतगुणे जीव दु:खी भी हैं। दु:खी जीवों की संख्या अधिक है और न बनता, कुछ भी न होता तो बड़ा ही उपकार था। न कुछ होता, न कोई दु:खी होता। कहो कौनसा उसे दु:ख था जो अपने दु:ख को शांत करने के लिए बनाया। यदि ईश को दु:ख था तो वह ईश क्या और उस दु:ख को शांत करने के लिए उसने बनाया यह जगत् तो अनेक युक्तियों से सोचो तो यह जगत् किसी के द्वारा बनाया गया है यह मुक्ति में बैठता नहीं है। यह जगत् स्वयं अपने आप अनादि से ऐसा ही प्रसिद्ध है, जो रचना यहाँ बतायी जा रही है यह रचना लोक की अनादि से इस ही प्रकार है।