वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1813
From जैनकोष
कल्प: सौधर्मनामायमीशानप्रमुखा: सुरा: ।
इहोत्पन्नस्य शक्रस्य कुर्वंति परमोत्सवम् ।। 1813 ।।
देखो का जन्मसमारोह―जब इंद्र उत्पन्न होता है उस समय की ये सब घटनाएँ बतायी जा रही हैं । उस समय ईशान इंद्र और भी इंद्र आदिक अनेक देव वहाँ खड़े होते हैं । कैसा अद्भुत समारोह का समय होता होगा? यहाँ ही किसी सेठ के घर कोई बालक उत्पन्न होता है तो कितनी खुशियां मनायी जाती हैं फिर वह तो स्वर्ग है, वहाँ कैसा अद्भुत समारोह मनाया जाता होगा, उसका वर्णन कौन कर सकता है? ईशान आदिक इंद्र अनेक देव सौधर्म इंद्र की ओर मुख कर के कुछ प्रतीक्षा करते हुए, अपने भाव प्रदर्शित करते हुए खड़े होते हैं तो मंत्री जन सौधर्म इंद्र से कह रहे हैं कि हे नाथ ! यह नाम का कल्प है और ये ईशान आदिक प्रमुख देव हैं । ये सब यहाँ उत्पन्न हुए देवों की उत्पत्ति की परम शोभा बनाते हैं, बड़ा उत्सव मनाते हैं, ये सब आपका जन्मोत्सव मनाने के लिए ही एकत्रित हुए हैं । उस इंद्र के मन में जो कुछ पहिले संभ्रम था कि मैं किस देश में आया हूँ और ये सब दिव्य रूप कौन लोग हैं, उन सबके समाधान में मंत्री एक-एक बात पर दृष्टि डालकर समाधान करते जा रहे हैं―हे नाथ ! ये सब आपके जन्म का परम उत्सव मनाने के लिए आये हुए हैं, यहाँ ऐसी परिपाटी है, और आपके पुण्य का ऐसा ही प्रभाव है ।