वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 2060
From जैनकोष
क्रुद्धस्याप्यस्य सामर्थ्यमचिंत्यं त्रिदशैरपि ।
अनेकविक्रियासारध्यानमार्गावलंबिन: ।।2060।।
विविधविक्रियारूप असार ध्यान मार्ग को अवलंबन करने वाले क्रोधी के भी ऐसी शक्ति भाग उत्पन्न हो जाती है कि जिसका चिंतन दैव भी नहीं कर सकते । प्रसिद्ध बात है द्वीपायनमुनि की । ध्यानी थे, सम्यग्दृष्टि थे और उनको तैजसऋद्धि प्रकट हुई थी, किंतु जब क्रोध आया तो चाहे उनका भी विनाश हो गया तो हो गया लेकिन उस क्रोध में वह प्रताप बता ही दिया कि सारी नगरी भस्म हो गई । तो क्रुद्ध हो तो भी उसके उस ध्यान की ऐसी शक्ति उत्पन्न होती है कि जिसका देव भी चिंतन नहीं कर सकते । शायद पुराण और इतिहासों में किसी भी देव ने ऐसा न किया होगा कि किसी नगरी को भस्म कर दे । तो देवो के द्वारा भी अचिंत्य ऐसे कार्य क्रुद्ध होने पर किए जाते हैं । लोग डरते हैं त्यागी साधुवों को कि कहीं क्रुद्ध न हो जायें तो हमारा बिगाड़ हो जाय, लेकिन ऐसा डर उन्हीं को है जिनके आत्मा में स्वयं में कुछ बल न हो, और जिनको यह दृढ़ता नहीं है कि जो होगा वह मेरे ही किन्हीं भावों से संचित विपाक होने पर होगा, ध्यान की सामर्थ्य बतायी जा रही है, ऐसी ऋद्धियाँ पैदा हो जाती हैं कि वे साधु संत यदि किसी को स्नेहभरी, दयाभरी दृष्टि से देख ले तो उसके रोग दूर हो जायें और कहीं क्रुद्ध होकर देख लें तो कहो जीवन से भी हाथ धोना पड़े, इतनी सामर्थ्य है ध्यान में । अब किस तरह उपयोग करें तो सही कल्याण हो यह उसके विवेक की बात है।