वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 2113
From जैनकोष
प्रतिसमयमुदीर्णं स्वर्गसाम्राज्यरूढ़ं,सकलविषयबीजं स्वांतदत्ताभिनंदनम् ।
ललितयुवतिलीलालिंगनादिप्रसूतं,
सुखमतुलमुदारं स्वर्गिणो निर्विशंति ।।2113।।
स्वर्गवासी देवों का विविध सुख में समययापन―स्वर्ग के देव प्रत्येक समय में उदय आये हुए विच्छेद रहित स्वर्ग के साम्राज्य से प्रसिद्ध उदार सुख का अनुभव करते हैं । ऐसा सुख भोगते हैं जो अंतःकरण को आनंद देने वाला है, जहाँ सुंदर देवांगनाएँ हैं उनकी लीलावों से, उनके रागअलापों से जो सुख उत्पन्न होता है वह सांसारिक सुख की दृष्टि से अद्भुत सुख है । ऐसे सुखों से ये देव सागरों पर्यंत का समय बिता देते हैं, पर कुछ उन्हें पता नहीं पडता कि इतना समय कैसे व्यतीत हो गया?