वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 2186
From जैनकोष
तथाप्युद्देशत: किंचित् ब्रवीमि सुखलक्षणम् ।
निष्ठितार्थस्य सिद्धस्य सर्वद्वंद्वातिवर्त्तिनः ।।2186।।
प्रभु के आनंद का दिग्दर्शनमात्र वर्णन का संकल्प―यद्यपि सिद्ध भगवान के आनंद का कोई वर्णन नहीं कर सकता है, उसे बताया नहीं जा सकता, तो भी नाममात्र सही, किसी भी ढंग से कुछ तो सुख का लक्षण कहना चाहिए । तो आचार्य कहते हैं कि जिस सिद्ध प्रभु के समस्त प्रयोजन सिद्ध हो गए हैं, जो समस्त दंद फंदो से दूर हो गए हैं, उसके सुख का हम थोड़ा बहुत नाममात्र का वर्णन करते हैं । सुख और आनंद में अंतर देखिये―सुख में दो शब्द हैं सु और ख । सु मायने सुहावना और ख मायने इंद्रिय । जो इंद्रियों को सुहावना लगे वह सुख कहलाता है । और आनंद उसे कहते हैं हाँ किसी भी प्रकार का इंद्रियजंय व्यापार न हो, निराकुलता प्राप्त हो । अर्थात् आत्मा में चारों ओर से समृद्धि बड़े उसका नाम है आनंद तो यह आनंद इस सुख से अधिक उत्कृष्ट है । लोग तो इस सुख को ही आनंद शब्द से कह देते हैं । जैसे कोई दरवाजे के बाहर शाम के समय दालान में अपने थोड़ा पैर पसारे पैरों पर हाथ धरे विश्राम से बैठा हो । कोई वहाँ से गुजरे और कहे कि क्यों भाई क्या हालत है? तो वह कहेगा―खूब आनंद है । प्रकृति के शब्दों को देखिये―वह सुख शब्द न बोलेगा, क्योंकि उस समय न स्पर्शनइंद्रिय का, न रसनाइंद्रिय का, न किसी अन्य इंद्रिय का विषय पल रहा, ऐसी स्थिति में उसके स्वभावत: आनंद शब्द निकलता है । तो उस पुरुष को न तो वहाँ कुछ खाने को दिया जा रहा है, न अन्य कोई चीज दी जा रही है, फिर उसे किस बात का आनंद है? अरे वह आनंद है निराकुलता का । इस आनंद का संबंध ज्ञान से है और सुख का संबंध राग से है ।
अनंतज्ञान से संबंधित आनंद का नाममात्र वर्णन का संकल्प―किसी बालक से पूछा जाय कि 19×8= कितने होते हैं? तो जब तक वह कुछ सोच विचार रहा है तब तक आकुलित है, और जब सोच विचारकर बता दिया कि 19×8=152 । तो इस सही उत्तर के दे लेने पर वह बड़ा खुश होता है । तो उस समय उसे जो एक खुशी का अनुभव हुआ, प्रसन्नता का अनुभव हुआ वह हुआ ज्ञान के कारण, एक सही जानकारी के कारण । किसी के हिसाब में 1 आने की गल्ती हो जाय तो उस गल्ती को दूर करने के लिए सारी रात बिजली जलाकर चार आने की बिजली जला देगा, बड़ा परिश्रम कर डालेगा, पर जब वह सही जान-कारी कर लेता है कि अरे मैं इस जगह यह हासिल लगाना भूल गया था, बस उस सही जानकारी के कारण प्रसन्नता का अनुभव करता है । तो आनंद होता है ज्ञान से संबंधित होकर और सुख होता है राग से संबंधित होकर । भगवान सर्वज्ञ पूर्ण जानकार हैं अत: उन्हें अनंतआनंद प्राप्त है, जिसका वर्णन हम इस रूप में कह सकते हैं ।