वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 2194
From जैनकोष
निष्कल: करणातीतो निर्विकल्पो निरंजन: ।
अनंतवीर्यतापंनो नित्यानंदाभिनंदित: ।।2194।।
निरंजन प्रभु की नित्यानंदाभिनंदितता―ये प्रभु समस्त कलंकों से दूर हुए, सिद्धभगवान सर्वोच्च विकास चिदानंद स्वरूप हैं । ये प्रभु शरीररहित हैं, इंद्रियों से अतीत हैं, कायरहित हैं, इंद्रियरहित हैं और विकल्परहित हैं । वे प्रभु निरंजन हैं । किसी भी प्रकार का उनमें अंजन नहीं रहा । जैसे अंजन नेत्रों में लगाया जाय तो उसके पोंछने पर भी वह नेत्रों से नीचे, अगल-बगल में भी चिपटता जाता है ऐसे ही ये रागादिक दोष चिपटकर आत्मा में लग जाते हैं । तो इस प्रकार के दोषों से भी रहित वे प्रभु हैं । उनमें किसी भी प्रकार का अंजन नहीं रहा अर्थात् किसी भी प्रकार का दोष नहीं रहा । जो अनंत वीर्य से संपन्न हैं, अनंत शक्ति से संपन्न हैं और विशुद्ध आनंद से आनंदित हैं ऐसे ये सिद्ध भगवान हमारे दृष्टि पथ में सदाकाल रहें । जब यह ज्ञानपुन्ज प्रभु हमारी दृष्टि में नहीं रहता तो यहाँ के अत्यंत मोही कलंकित जीवों पर दृष्टि पहुंचती है, और राग अथवा द्वेष होता है, जिस संताप में जलकर हम अपने को बरबाद करते हैं । हम में तो इन समस्त आवरणों को नष्ट करने की सामर्थ्य है । तो अपनी सावधानी बनाये जिससे प्रभु का स्मरण रहे और अपने स्वरूप का ध्यान रहे ।