वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 409
From जैनकोष
द्वयोरनादिसंबंध: सांत: पर्यंतवजित: ।वस्तुस्वभावतो ज्ञेय भव्याभक्ष्याङ्नो क्रमात् ॥409॥
भव्य अभव्य का कालकृत अंतर – कहते हैं कि भव्य जीव और अभक्ष्य जीव दोनों के ही संसार अनादिकाल से लगा है लेकिन भविष्य में अंतर है । भव्य का संसार अंतसहित हो सकता है और अभव्य का अंतरहित ही होता है । अभव्य के अनादि से संसार है और अनंतकाल तक रहेगा और भव्य जीव के संसार अनादि से है, कहीं ऐसा नहीं है, कि पहिले शुद्ध जीव हो और फिर उपाधि लगी हो, भव्य का भी संसार अनादि से है किंतु उपायों से इसके संसार का अंत हो सकता है ।