वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 429
From जैनकोष
एकादय: प्रदेशा: स्यु: पुद्गलानां यथायथम् ।संख्यातीताश्च संख्येया अनंता योगिकल्पिता: ॥429॥
पुद्गल द्रव्य के प्रदेशों की जानकारी ― पुद्गलद्रव्य तो वस्तुत: एकप्रदेशी हैं । शुद्ध पुद्गल एक परमाणु का नाम है । स्कंधों में स्कंध वस्तुत: द्रव्य नहीं है । द्रव्य तो परमाणु है, किंतु परमाणुवों का पिंड परमाणुवों का मिलान ऐसा विलक्षण होता है जो अन्य किसी द्रव्य में नहीं पाया जाता । जीव जीव मिलकर पिंड नहीं बन सकता । जो शरीर में जीव और देह कुछ मिला हुआ पिंड सा लगता है वह जीव और पुद्गल मिलकर पिंड बना हो इस कारण नहीं लगता, किंतु जीव और पुद्गल में योग्यतानुसार ऐसा निमित्तनैमित्तिक संबंध है कि वह उस संबंध से बाहर नहीं जा सकता, इसी कारण पिंडरूपता का भ्रम है । जीव जीव पिंड नहीं बन सकते । जीव पुद्गल पिंड नहीं बन सकते, जीव धर्म आदिक पिंड नहीं बन सकते । यों ही सभी पदार्थ परस्पर जोड़ लगाकर देखते जायें कहीं भी पिंड नहीं बनता । केवल पुद्गल ही ऐसे विलक्षण पदार्थ हैं कि जिनका संघात होने पर एक पिंड बन जाता है । वस्तुत: पुद्गल द्रव्य एक परमाणु है, वे मिलकर संख्यात परमाणु तक के स्कंध बन जायें, दो तीन चार मिलकर स्कंध बन जायें, यों ही लाखों, करोड़ों, अरबों संख्यात् अणु मिलकर स्कंध बन जायें, कुछ असंख्यात परमाणु मिलकर स्कंध बन जायें और कुछ अनंत परमाणु मिलकर स्कंध हो जायें । हम आपको जो कुछ भी दिखता है, छोटी से छोटी चीज सुई की नोक भी अनंत परमाणुवों का स्कंध है । अब आप समझ लीजिए कि छोटे से छोटे कण जो आँखों दिख रहे हैं उनमें परमाणुवों के पुंज हैं । एक परमाणु इतना सूक्ष्म होता है तो इस तरह पुद्गल द्रव्य कोई संख्यातप्रदेशी हैं, कोई असंख्यातप्रदेशी हैं और कोई अनंतप्रदेशी हैं ।