वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 529
From जैनकोष
असत्यमपि तत्सत्यं यत्सत्त्वाशंसकं वच:।
सावद्यं यच्च पुष्णाति तत्सत्यमपि निंदितम्।।529।।
हितकारकत्व में वचन सत्यता―जो वचन जीवों का हित करने वाला है वह असत्य हो तो भी सत्य वचन है। सत्य वचन का प्रयोजन है जीवों का हित हो। ऐसा सत्य बोलने से भी लाभ कुछ नहीं है। जिस वचन में अपनी और दूसरे की भलाई हो उसे सत्य कहते हैं। विषय कषाय के समागम की पूर्ति का नाम भलाई नहीं है, जिससे यह माना जाय कि अपने भोग विषय के साधन असत्य वचन से मिलें तो वह भी सत्य हो जायगा, क्योंकि जिसमें हित हो ऐसे वचन का नाम सत्य कहा है। तो वह हित कहां है? विषय कषाय के साधन मिलें उसमें जीव की कहां भलाई है और उसके लिए असत्य वचन बोले जायें तो वे सत्य नहीं कहलाते। कदाचित कोई भी वचन हो जिससे जीव अपने सच्चे हित की ओर लग जाता है तो ऐसा असत्य भी वचन प्राणि का भला करने वाला होने से सत्यरूप है। उसका बुरा तो नहीं होता, भला ही होता है, और जो वचन पाप को पुष्ट करते हों, हिंसारूप कार्य को पुष्ट करता हो वह सत्य भी हो तो भी असत्य है और निंद्यनीय है। कल्पना करो कि सामने से कोई गाय भागती निकले और पीछे से एक शिकारी हाथ में छुरी लिए भागता हुआ निकले तो आप अपने दिल की बात बतावें कि यदि वह आपसे पूछे कि क्या इधर से गाय निकली, तो आप उसे क्या उत्तर देंगे? आप जान गये थे कि गाय यहाँ से भागी है और तुरंत ही यह छुरी लिए हुए शिकारी निकला है, वह शिकारी उस गाय को मारने के लिए दौड़ रहा है तो बतावो कि उसके पूछने पर आप क्या उत्तर देंगे? क्या आप उससे यह कहेंगे कि हाँ-हाँ यहाँ से अभी गाय निकली है, अब क्या है, चले जावो, तुरंत मिल जायगी। ऐसा जवाब देने का क्या आपका चित्त चाहेगा? आप तो यही कहेंगे कि भाई हमें कुछ पता नहीं है, यहाँ से तो कुछ भी नहीं निकला। आप तो यही सोचेंगे कि शिकारी यहाँ से लौट जाय और गाय के प्राण बच जायें।
सत्यवचन का प्रयोजन स्वपरहित―ऐसे ही जो वचन इस जीव को अहित में ले जाने वाला हो अर्थात् उस जीव से हिंसा आदिक कार्य करा दे ऐसा वचन भी असत्य है और निंद्यनीय है। आत्मध्यान चाहने वाला पुरुष जिस प्रकार की अपनी परिणति बनाये कि मुझे आत्मध्यान में सफलता मिले इसके लिए यहाँ व्रतों का वर्णन चल रहा है। ध्यानार्थी पुरुष को सत्य होना चाहिए। उस सत्य व्रत की मीमांसा में यहाँ यह कहा जा रहा है कि सत्य पुरुष को सत्य वचन का प्रयोजन है स्वपरहित। अपना हित हो और दूसरों का हित हो ऐसे वचन बोलना सो सत्य है।