वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 550
From जैनकोष
यमव्रतगुणोपेतं सत्यश्रुतसमन्वितम् ।यैर्जन्म सफलं नीतं ते धन्या धीमतां मता: ॥550॥
सत्य शास्त्रों के अध्ययन से जीवन की सफलता ― वे पुरुष धन्य हैं जिन्होंने अपना जन्म यम नियम व्रत तपश्चरण आदिक गुणों से शुद्ध होकर सत्य शास्त्रों के अध्ययन से सफल किया है । जब कभी यह मनुष्य यह सोचता है कि मुझे कुछ काम नहीं मिल रहा है करने को तो हम खाली समय में क्या करें । समय नहीं काटा कटता, पर काम करने को इतना पड़ा हुआ है कि कोई करे तो सारा जीवन भी उस कार्य में लग सकता है । हमारे पूज्य महर्षि संतों ने जो अनुभव शास्त्रों में लिखा है और जिस पद्धति से ज्ञान के मार्ग में लगने का उनमें प्रयास किया है उन शास्त्रों का अध्ययन करने लगें तो सारा जीवन खप जाय, पर शास्त्रों का अध्ययन प्रतिपादन पूर्ण नहीं हो सकता । कोई एक विषय है क्या ? करुणानुयोग का इतना विशाल क्षेत्र है कि जिसमें तीन लोक, तीन काल की विशेष-विशेष घटनाएँ दी हैं, आत्मा के परिणामों का जिसमें वर्णन है, कर्मों की परिस्थितियों का जिसमें प्रतिपादन है। अनेक ढंग से ग्रंथों का अध्ययन करने पर ही विदित होगा । ज्ञान शास्त्र कितने गहरे हैं, यह तो उनको ही पता पड़ सकता जो इस शास्त्रज्ञान में प्रवेश करते हैं । जो उससे दूर रहें वे अनुमान भी नहीं कर सकते कि शास्त्र कितने विशाल और गहन हैं । शास्त्रों के अध्ययन का एक महान काम पड़ा हुआ है । हमारा जब भी समय खाली हो तो उस समय शास्त्रों का अध्ययन करने लगें, यह सच्ची कमाई की बात बताई जा रही है, यही है आत्महित का सच्चा लाभ । अपने स्वार्थ की पूर्ति करने की हमारी धुन हो, हम अपने वास्तविक कल्याण को प्राप्त करने की ऐसी तीव्र धुन बनाएँ कि जब हमें समय मिले तो इन वीतराग महर्षियों के द्वारा प्रणीत शास्त्रों को पढ़ने में लग जायें । एक से एक नई बात, नया ज्ञान, शुद्ध ज्योति मिलती जायगी तो उसमें ऊब न आयेगी, और इस तरह से जो उपयोग निर्मल बनेगा ज्ञान की ओर बनेगा, उससे ऐसा जँचने लगेगा कि हमने मानवजीवन पाकर कुछ पाया है ।
विषयकषायों में निस्सारता ― अन्यथा विषयकषायों की घटनाएँ ऐसी निसार घटनाएं हैं कि जिन घटनाओं में घटित होकर यह अनुभव मिलेगा कि हमने समय बेकार खोया और हम रीते के ही रीते रहे । हम इस संसार के संकटों से छूटने का उपाय बना लें किंतु विषयकषायों में ही जिनका समय गुजरता है वे केवल पछतावा ही हाथ पाते हैं, अपने को रीता आकुल व्याकुल ही प्राप्त कर पाते हैं । इसके लिए चाहिए कि हम शास्त्रों के अध्ययन पर विशेष दृष्टि दें । समय किसे नहीं मिल रहा ? बहुत सा समय खाली है, पर एक लगन बने, रुचि जगे, अध्ययन करने लगे तो थोड़ी ही देर में ऐसा अनुराग जगेगा कि उसमें मन लग जायेगा । वे पुरुष धन्य हैं और विद्वानों के द्वारा पूज्य होते हैं जिन्होंने नियमपूर्वक रह कर सत्य शास्त्रों का अध्ययन किया है । मिलें कोई गुरु ऐसे जो बारबार ज्ञान की ओर दृष्टि दिलायें और न मिलें तो ये शास्त्र ही गुरु हैं ।
आत्मा का सत्य हित शास्त्राध्ययन ― शास्त्रों में जो वचन लिखे हैं वे इन्हीं गुरुवों ने ही तो लिखे हैं । कोई वचन शब्दरूप परिणत होकर कानों में आये तो शास्त्रों के वचन हमारे ज्ञान के द्वारा चारित्र से उठकर हृदय में आयें तो यह भी गुरु का सत्संग है । शास्त्रों का अध्ययन करना गुरुवों के सत्संग के समान है । तो इन शास्त्रों के अध्ययन से जिन्होंने ज्ञानलाभ लिया है वे पुरुष धन्य हैं और वे ही पुरुष उस सत्य मर्म को अपने वचनों से प्रकट कर सकते हैं जो सत्य की रुचि रखे ऐसा पुरुष इस सत्य आत्मा का सत्य हित कर सकता है ।
अहिंसक जीवन में सुख शांति ― यह आवश्यक है कि अहिंसक जीवन रहे, किसी भी प्राणी का विरोध मन में न आये चाहे वह हम पर आक्रमण ही क्यों न कर रहा हो । उससे बचाव कर लें, बचाव करने में कुछ भी बीते, आक्रांता का प्राण भी जाय इतने पर भी ज्ञानी पुरुष का यह भाव नहीं रहता कि इसका अकल्याण हो जाय । यह कितने गहरे ज्ञानप्रकाश की बात है । यह सब शास्त्रों के अध्ययन से बल प्राप्त होता है अतएव हम बहुत-बहुत समय शास्त्रों के अध्ययन में बितायें तो यह हमारी भलाई का मार्ग है । कोई-कोई पुरुष ऐसे भी होते हैं कि जिनके कोई आजीविका कार्य भी न लगा हुआ हो तो एक तो कोई कार्य नहीं लगा है, इससे समय नहीं कटता और दु:खी हैं और शास्त्रों से दूर रहते हैं, ज्ञानचर्चा से दूर रहते हैं और उनका दु:ख तो कई गुना और बढ़ता जायेगा । विकट परिस्थितियों में भी यदि ज्ञान की बात हृदय को मिलती रहे तो उससे धैर्य रहता है, शांति रहती है और कुछ गया हुआ पुण्य पुन: वापिस आ सकता है । और सुख शांति में जीवन गुजर सकता है ।