वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 987
From जैनकोष
बकवृत्ति समालम्व्य वंचकैर्वंचितं जगत्।
कौटिल्यकुशलै: पापै: प्रसन्नं कश्मलाशयै:।।987iiiiiii।।
कौटिल्यकुशल ठगों की बकवृत्ति पर खेदप्रकाशन― जिसका हृदय कलंक से कलंकित है, जो मायाचार में कुशल है, ऐसे मायाचारी पुरुष ने बगलाभगत जैसी वृत्ति धारण करके सारे जगत को ठग डाला। आज के समय में राजनीति के युग में बहुत बड़ा नेता जो होता है उसका नाम कूटनीतिज्ञ धरा गया है। कूटनीतिज्ञ शब्द आजकल बड़े अच्छे रूप में देखा जा रहा है लेकिन उस कूटनीतिज्ञ शब्द का अर्थ तो देखिये क्याहै। जो मायाचार की नीति में कुशल हो उसे कूटनीतिज्ञ कहते हैं। मगर इस तरह के अर्थ पर भी नेताओं ने कंट्रोल कर लिया।इस तरह का अर्थ अब अखबारों में नहीं किया जाता, किंतु जो देश के हित की बात विचारे, अनेक मायाचारी के कार्यों को कर सकने में कुशल हो, कूटनीति की मंत्रणाओं में जो अत्यंत कुशल हो वह कूटनीतिज्ञ कहलाता है। आज के समय में ऐसे ही पुरुष को वोट देने वाले लोग अधिक हैं। आज का समय एक मायाचारी से प्रचुर बन गया है। लोग कहते हैं कि आजकल तो लोग धन के लिए होड़ लगा रहे हैं। धन के पीछे बेकार भाग रहे हैं, किंतु कुछ समय बाद ऐसा समय आयगा कि धन के लिए होड़ लगाना लोग कम कर देंगे। जब शहरी संपत्ति की सीमा बन जायगी, जब कुछ अधिक दिया ही न जायगा तो यहाँ भी होड़ जरा कम हो सकती। अथवा जब टैक्स बढ़ गया― जैसे आजकल किसी ने एक लाख कमाया तो उसमें से 80 हजार सरकार ने ले लिए और 20 हजार उस व्यापारी को मिले। तो इससे लोग सोचेंगे कि अधिक क्यों कमाना? क्यों बेकार का कष्ट करना, आखिर मिलना तो थोड़ा ही है। मुझे तो थोड़ा ही कमाना है और उसी से काम चलाना है। यों लोगों की धन संबंधी होड़ खतम हो जायगी। वह तो राज्य के अधिकार की संपत्ति है। आज के मायायुग में किसी तरहनेता बने, मिनिस्टर बने तो वे सब बातें कूटनीति की बातों में कुशल हुए बिना नहीं बन पाती।। हाँ कभी एक युग था कि सरल महान आत्मा भी राज्याधिकारी होते थे, पर अब समय बदला है। अब तो राज्याधिकारी होने के लिए कूटनीति में कुशल होना चाहिए। इसके लिए कोर्ष भी तैयार होरहे हैं, कूटनीतिज्ञ के शास्त्र बन रहे हैं मायाचारी किस तरह की जानी चाहिए, दूसरों को कैसे ठगना चाहिए, आदि बातों का अध्ययन कराने के लिए कूटनीतिशास्त्र तैयार हो रहे हैं। उनको पढ़ाकर कूटनीतिशास्त्री बनाये जा रहे हैं। कोई कपटी यह बात सोचता हो कि देखो मैंने इसको कितना ठग लिया, हमने ग्राहकों से मनमाने इतने दाम ले लिए, ऐसी नीति करके अगर ग्राहकों को ठगा गया तो बताइये हानि किसकी हुई। अरे उन ग्राहकों के तो कुछ पैसे ही गए मगर ठगने वाले ने तो अपने भाव बिगाड़कर अपने आत्मा को ही ठगा, अपना भविष्य खराब किया। तो उसने खुद का ही बिगाड़किया, दूसरे का कुछ बिगाड़ नहीं किया।