वर्णीजी-प्रवचन:द्रव्य संग्रह - गाथा 16
From जैनकोष
सद्दो बंधो सुहुमो थूलो संठाण भेद तम छाया ।
उज्जोदादवसहिया पुग्गलदव्वस्स पज्जाया ।।16।।
अन्वय―सद्दो, बंधो, सुहमो, थूलो, संठाण, भेदतमछाया, उज्जोदादवसहिया पुग्गलदव्वस्स पज्जाया ।
अर्थ-―शब्द, बंध, सूक्ष्म, स्थूल, संस्थान, भेद, अंधकार, छाया, उद्योत, आताप ये अथवा इन सहित पुद्गलद्रव्य के पर्याय हैं ।
प्रश्न 1―पर्याय किसे कहते हैं?
उत्तर-―गुणों की अवस्थाओं को पर्याय कहते हैं ।
प्रश्न 2―पर्याय कितने प्रकार के होते है?
उत्तर―पर्याय दो प्रकार के होते है―(1) अर्थपर्याय, (2) व्यंजनपर्याय ।
प्रश्न 3―अर्थपर्याय किसे कहते हैं?
उत्तर―अगुरुलघु गुण के निमित्त से द्रव्य में होने वाली षड्गुण हानिवृद्धिरूप, (अनंत भाग वृद्धि, असंख्यात भाग वृद्धि, संख्यात भाग वृद्धि, संख्यात गुण बुद्धि, असंख्यात गुण वृद्धि, अनंत गुण वृद्धि, अनंत भाग हानि, असंख्यात भाग हानि, संख्यात भाग हानि, संख्यात गुण हानि, असंख्यात गुण हानि, अनंत गुण हानिरूप) अंत: परिणमन को अर्थपर्याय कहते हैं । यह अर्थपर्याय सूक्ष्म है व वचन के अगोचर है ।
प्रश्न 4―व्यंजनपर्याय किसे कहते हैं?
उत्तर-―गुणों की व्यक्त अवस्था को व्यंजनपर्याय कहते हैं ।
प्रश्न 5―व्यंजनपर्याय के कितने भेद हैं?
उत्तर―व्यंजनपर्याय के 2 भेद हैं―(1) गुणव्यंजन पर्याय, (2) द्रव्यव्यंजन पर्याय ।
प्रश्न 6―अर्थपर्याय किसे कहते हैं?
उत्तर―वस्तु के प्रदेशवत्त्वगुण के अतिरिक्त अन्य समस्त गुणों के परिणमन को अर्थपर्याय कहते हैं ।
प्रश्न 7―गुणव्यंजन पर्याय के कितने भेद हैं?
उत्तर―गुणव्यंजन पर्याय के 2 भेद हैं―(1) स्वभाव गुणव्यंजन पर्याय, (2) विभाव गुणव्यंजन पर्याय ।
प्रश्न 8―स्वभाव गुणव्यंजन पर्याय किसे कहते हैं?
उत्तर―परनिमित्त या संयोग के बिना गुणों के शुद्ध परिणमन को स्वभाव व्यंजनपर्याय कहते हैं । शुद्ध परिणमन सम व एक स्वरूप होता है ।
प्रश्न 9―विभाव गुणव्यंजन पर्याय किसे कहते हैं?
उत्तर―परसंयोग व निमित्त को पाकर होने वाले गुणों के विकृत परिणमन को विभाव गुणव्यंजनपर्याय कहते हैं । विभाव परिणमन विषम व नाना प्रकार का होता है ।
प्रश्न 10―द्रव्यव्यंजन पर्याय किसे कहते हैं?
उत्तर―प्रदेशवत्त्व गुण के परिणमन व अनेक द्रव्यों के संयोग से होने वाले प्रदेश परिणमन को द्रव्यव्यंजन पर्याय कहते हैं ।
प्रश्न 11―द्रव्यव्यंजन पर्याय के कितने भेद हैं?
उत्तर―द्रव्यव्यंजन पर्याय के 2 भेद हैं―(1) स्वभाव द्रव्यव्यंजन पर्याय, (2) विभाव द्रव्यव्यंजन पर्याय ।
प्रश्न 12―स्वभाव द्रव्यव्यंजन पर्याय किसे कहते हैं?
उत्तर―परद्रव्य के संबंध से रहित केवल एक ही द्रव्य के प्रदेशपरिणमन को स्वभाव द्रव्यव्यंजन पर्याय कहते हैं ।
प्रश्न 13―विभाव द्रव्यव्यंजन पर्याय किसे कहते हैं?
उत्तर―परद्रव्य के निमित्त से व संबंध सहित प्रदेशों के परिणमन को विभाव द्रव्यव्यंजन पर्याय कहते हैं ।
प्रश्न 14―पुद्गलद्रव्य में गुणव्यंजनपर्याय क्या-क्या होते है?
उत्तर―पाँच प्रकार का रूप, पाँच प्रकार का रस, दो प्रकार का गंध, 4 प्रकार का स्पर्श ये पुद्गल द्रव्य की गुणव्यंजन पर्याय हैं ।
प्रश्न 15-―कौन से चार प्रकार का स्पर्श गुणव्यंजन पर्याय नहीं है?
उत्तर-―गुरु, लघु, कोमल, कठोर, ये चार गुणव्यंजन पर्याय नहीं किंतु द्रव्यपर्याय हैं ।
प्रश्न 16―गुरु, लघु, कोमल, कठोर ये चार व्यंजनपर्याय क्यों नहीं?
उत्तर―यदि ये गुणव्यंजन पर्याय होती तो परमाणु अवस्था में ये रहना चाहिये थे, किंतु परमाणु में ये चार स्पर्श होते नहीं है अत: स्कंध के याने द्रव्यव्यंजन पर्याय के साथ इनका संबंध होने से ये द्रव्यपर्याय ही हैं ।
प्रश्न 17―इस गाथा में कहे गये पर्याय कौन से पर्याय हैं?
उत्तर―ये सब विभाव द्रव्यव्यंजन पर्याय हैं ।
प्रश्न 18―शब्द किसे कहते है?
उत्तर―भाषावर्गणा के स्कंधों के संयोग वियोग के कारण जो ध्वनिरूप परिणमन है उसे शब्द कहते हैं ।
प्रश्न 19―शब्द कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर―शब्द दो प्रकार के होते हैं-―(1) भाषात्मक और (2) अभाषात्मक ।
प्रश्न 20―भाषात्मक शब्द किसे कहते हैं?
उत्तर―त्रसजीवों के योग के कारण होने वाली ध्वनि को भाषात्मक शब्द कहते हैं ।
प्रश्न 21―भाषात्मक शब्द कितने प्रकार के हैं?
उत्तर―भाषात्मक शब्द दो प्रकार के हैं-―(1) अक्षरात्मक और (2) अनक्षरात्मक ।
प्रश्न 22―अक्षरात्मक भाषा कितने प्रकार की होती है?
उत्तर―संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, मागधी, पाली, हिंदी, उर्दू, इंगलिश, जर्मनी, फ्रान्स, बंगाली, गुजराती, तेलुगु, कनाड़ी, मद्रासी, पंजाबी, अरबी और मराठी आदि अनेक प्रकार की अक्षरात्मक भाषा होती है । यह आर्य म्लेच्छ मनुष्य आदि के होती है । इस भाषा से व्यवहार की प्रवृत्ति होती है ।
प्रश्न 23―अनक्षरात्मक भाषा किनके होती है?
उत्तर―द्वींद्रिय, त्रींद्रिय, चतुरिंद्रिय, असंज्ञीपंचेंद्रिय व संज्ञीपंचेंद्रिय तिर्यंचों के अनक्षरात्मक भाषा होती है । सर्वज्ञदेव की दिव्यध्वनि भी अनक्षरात्मक भाषा कहलाती है ।
प्रश्न 24―ये भाषात्मक शब्द तो जीवों के शब्द हैं इनको पुद᳭गल द्रव्य की पर्याय क्यों कहा?
उत्तर―-यद्यपि भाषात्मक शब्द की उत्पत्ति जीव के संयोग से है, जीव ने जो पहिले शब्दादि पंचेंद्रिय विषयों के रागवश सुस्वर या दुःस्वर प्रकृति का बंध किया था उसके उदय के निमित्त से है, तथापि निश्चय से भाषावर्गणा नामक पुद्गल स्कंध के ही परिणमन हैं, अत: भाषात्मक शब्द पुद्गल द्रव्य के पर्याय कहे गये हैं ।
प्रश्न 25―इन शब्दों के वर्तमान पर्याय के समय जीव किस प्रकार निमित्त होता है?
उत्तर―जीव के इच्छा उत्पन्न होती है कि मैं इस प्रकार बोलूं । इच्छा के निमित्त से आत्मा के प्रदेशों का योग होता है । उस योग के निमित्त से एकक्षेत्रावगाह स्थित शरीर का वात (वायु) चलता है । शरीरवायु चलने के निमित्त से औंठ, जिह्वा, कंठ, ताल का तदनुरूप हलन चलन होता है उसके निमित्त से भाषावर्गणा का शब्दरूप परिणमन होता है ।
प्रश्न 26―दिव्यध्वनि के शब्द में आत्मा किस प्रकार निमित्त होता है?
उत्तर―पूर्वकाल में सम्यग्दृष्टि आत्मा ने जगत के जीवों के प्रति परमकरुणारूप भाव किये इनका मोह किसी प्रकार छूटे सुमार्ग पर लग जावे आदि इस प्रकार की भावना से जो विशिष्ट पुण्यप्रकृति एवं सुस्वर प्रकृति का बंध किया उसके उदय को निमित्त पाकर, भव्यजीवों के पुण्योदय होने पर, योग के निमित्त से अर्हंत परमेष्ठी के सर्वांग से भाषावर्गणावों का अनक्षरात्मक भाषारूप परिणमन होता है ।
प्रश्न 27―अभाषात्मक शब्द कितने प्रकार के हैं?
उत्तर―अभाषात्मक शब्द 2 प्रकार के है―(1) प्रायोगिक, (2) वैस्रसिक ।
प्रश्न 28―प्रायोगिक शब्द किसे कहते हैं?
उत्तर―यथा योग्य दो पौद्गलिक स्कंधों के प्रयोग संबंध होने पर जो शब्द उत्पन्न होते हैं उन्हें प्रायोगिक शब्द कहते हैं ।
प्रश्न 29―प्रायोगिक शब्द कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर―प्रायोगिक शब्द चार प्रकार के होते है―(1) तत, (2) वितत, (3) घन और (4) सुषिर ।
प्रश्न 30―तत शब्द किसे कहते है?
उत्तर―वीणा, सितार आदि के तारों से उत्पन्न होने वाले शब्द को तत शब्द कहते हैं ।
प्रश्न 31―वितत शब्द किसे कहते हैं?
उत्तर―ढोल, नगाड़े आदि के चर्म से उत्पन्न होने वाले शब्द को वितत शब्द कहते हैं ।
प्रश्न 32―धन शब्द किसे कहते हैं?
उत्तर―काँसे के घंटे आदि के प्रयोग से उत्पन्न होने वाले शब्द को घन शब्द कहते हैं ।
प्रश्न 33―सुषिर शब्द किसे कहते हैं?
उत्तर―बंशी, तुरी आदि को फूककर बनाने से उत्पन्न हुए शब्द को सुषिर शब्द कहते हैं ।
प्रश्न 34―मनुष्यादि के व्यापार से उत्पन्न होने वाले इन शब्दों को केवल पुद्गल के
पर्याय क्यों कहे जा रहे हैं?
उत्तर―मनुष्यादि का व्यापार तो प्रकट जुदा है, निमित्तमात्र है । उक्त सभी शब्द केवल पुद्गल के ही पर्याय हैं ।
प्रश्न 35―वैस्रसिक शब्द किसे कहते हैं?
उत्तर―विस्रसा अर्थात् स्वभाव से याने किसी दूसरे के प्रयोग बिना जो शब्द उत्पन्न होते हैं उन्हें वैस्रसिक शब्द कहते हैं । जैसे मेघ गर्जना के शब्द आदि ।
प्रश्न 36―बंध किसे कहते हैं?
उत्तर―दो या अनेक पदार्थों के परस्पर बंध हो जाने को बंध कहते हैं । जो स्कंध दिखते हैं उनमें बंध पर्याय है वह पौद्गलिक बंध है । कर्म और शरीर का बंध भी पौद्गलिक है ।
प्रश्न 37―सूक्ष्म किसे कहते हैं?
उत्तर―अल्पपरिमाण को सूक्ष्म कहते हैं । यह सूक्ष्म दो प्रकार का होता है―(1) साक्षात् सूक्ष्म और (2) अपेक्षाकृत सूक्ष्म ।
प्रश्न 38―साक्षात् सूक्ष्म किसे कहते हैं?
उत्तर―जिससे सूक्ष्म अन्य कोई न हो अर्थात् जिसकी सूक्ष्मता किसी की अपेक्षा रखकर न बनी हो । जैसे―परमाणु ।
प्रश्न 38―अपेक्षाकृत सूक्ष्म किसे कहते हैं?
उत्तर―जो सूक्ष्मता किसी की अपेक्षा रखकर प्रतीत हो । जैसे आम से आंवला सूक्ष्म है ।
प्रश्न 40―स्थूल किसे कहते हैं?
उत्तर―बड़े परिमाण वाले को स्थूल कहते हैं । यह भी 2 प्रकार का है―(1) उत्कृष्ट स्थूल और (2) अपेक्षाकृत स्थूल ।
प्रश्न 41―उत्कृष्ट स्थूल कौन है?
उत्तर―समस्त लोकरूप महास्कंध सर्वोत्कृष्ट स्थूल है ।
प्रश्न 42―अपेक्षाकृत स्थूल किसे कहते हैं?
उत्तर―जो स्थूलता किसी की अपेक्षा रखकर प्रतीत हो । जैसे आंवले से आम स्थूल है ।
प्रश्न 43―सूक्ष्म और स्थूल पुद्गल द्रव्य विभाव व्यंजनपर्याय क्यों माने गये?
उत्तर―सूक्ष्म और स्थूल पुद्गल द्रव्य के किसी गुण के परिणमन नहीं है, किंतु अनेक प्रदेशों (परमाणुवों) के संबंध से व उनके वियोग से सूक्ष्मता स्थूलता होती है, अतएव ये विभावव्यंजन पर्याय हैं ।
प्रश्न 44―संस्थान किसे कहते हैं?
उत्तर―मूर्त पदार्थ के आकार को संस्थान कहते हैं । समचतुरस्रसंस्थान, न्यग्रोधसंस्थान, स्वातिसंस्थान, कुब्जकसंस्थान, वामनसंस्थान, हुंडकसंस्थान―ये भी पुद᳭गलद्रव्य की विभावव्यंजन पर्याय हैं और शरीर के अतिरिक्त गोल त्रिकोण आदि अन्य स्कंधों के संस्थान भी पुद्गल द्रव्य के विभावव्यंजन पर्याय हैं तथा अन्य अव्यक्त संस्थान भी पुद्गल के विभावव्यंजनपर्यायें हैं ।
प्रश्न 45―समचतुरस्रादि संस्थान तो जीव के हैं उन्हें पुद्गल का कैसे कहते?
उत्तर―ये संस्थान शरीर के आकार हैं शरीर पौद्गलिक है चैतन्यभाव से भिन्न हैं इसलिये वे भी वास्तव में पुद्गल के विभावव्यंजन पर्याय हैं ।
प्रश्न 46―भेद किसे कहते हैं?
उत्तर―संयुक्त पदार्थ के खंड होने को भेद कहते हैं ।
प्रश्न 47―भेद कितने प्रकार का होता हैं?
उत्तर―घनखंड, द्रवखंड आदि अनेक प्रकार का भेद होता है । जैसे गेहूं का चूर्ण, घी का हिस्सा आदि ।
प्रश्न 48―तम किसे कहते हैं?
उत्तर―देखने में बाधा डालने वाले अंधकार को तम कहते हैं ।
प्रश्न 49―तम तो प्रकाश के अभाव को कहते हैं, वह पुद्गल पर्याय कैसे हैं?
उत्तर―प्रकाश को अंधकार का अभाव बताकर प्रकाश का भी तो लोप किया जा सकता । दृष्टि का साधक और रोधक होने से एक को सद्भावरूप और एक को अभावरूप कहना ठीक नहीं । दोनों ही सद्भावरूप हैं । जैसे प्रकाश स्कंध के प्रदेशों की अवस्था है वैसे अंधकार भी स्कंध के प्रदेशों की अवस्था है ।
प्रश्न 50―छाया किसे कहते हैं?
उत्तर―किसी पदार्थ के निमित्त से प्रकाशयुक्त अथवा स्कंध पदार्थ पर प्रतिबिंब होने को छाया कहते हैं । जैसे वृक्ष की पृथ्वी पर छाया, दर्पण में मनुष्य का प्रतिबिंब जल में चंद्रमा का प्रतिबिंब आदि ।
प्रश्न 51―ये प्रतिबिंब वृक्ष, मनुष्य और चंद्र के हैं, अत: उन्हीं के पर्याय होना चाहिये?
उत्तर-―वृक्ष, मनुष्य, चंद्र तो निमित्तमात्र हैं, ये प्रतिबिंब तो पृथ्वी दर्पण जल के पर्याय हैं, क्योंकि जो जिसके प्रदेश में परिणमता है वह उसकी ही पर्याय होती है ।
प्रश्न 52―उद्योत किसे कहते हैं?
उत्तर―अधिक उजाला उत्पन्न नहीं करने वाले विशिष्ट प्रकाश को उद्योत कहते हैं ।
प्रश्न 53―यह उद्योत किन पदार्थों में होता है?
उत्तर―चंद्रविमान में, विशिष्ट रत्नों में जुगुनू आदि तिर्यंच जीवों के शरीर में उद्योत होता है । यह उद्योत भी रूप, रस, गंध और स्पर्श गुण का परिणमन नहीं है किंतु पुद᳭गलद्रव्य की द्रव्यपर्याय हैं ।
प्रश्न 54―आतप किसे कहते हैं?
उत्तर-―जो मूल में तो शीतल हो, किंतु अन्य पदार्थों के उष्णता उत्पन्न होने में निमित्त हो उसे आतप कहते हैं ।
प्रश्न 55―आतप किन पदार्थों में होता है?
उत्तर―सूर्यविमान में, सूर्यकांत आदि मणियों में यह आतप होता है । आतप जीव के कार्यों में से केवल पृथ्वीकाय में ही होता है । आतप भी रूप, रस, गंध और स्पर्श का परिणमन ही नहीं है किंतु पुद्गल की द्रव्यपर्याय है ।
प्रश्न 56―गाथोक्त 10 पर्यायों के अतिरिक्त पुदगल की अन्य भी द्रव्यपर्यायें होती हैं या नहीं?
उत्तर―ये 10 पर्यायें तो मुख्यता से बताई हैं इनके अतिरिक्त और भी द्रव्यपर्यायें हैं । इनकी पहिचान मुख्य यह है कि जो रूप, रस, गंध, स्पर्श गुण का परिणमन तो न हो और स्कंध प्रदेशों में परिणमन पाया जावे उन्हें पुद्गल की द्रव्यपर्यायें जानना चाहिये । जैसे―रबड़ का प्रसार, दूध से दही होना, गाड़ी की गति, मुट्ठी का बंधना आदि ।
प्रश्न 57―गुरु, लघु, कोमल, कठोर ये गुणपर्याय हैं या द्रव्य पर्याय हैं?
उत्तर―वास्तव में तो ये द्रव्यपर्यायें हैं किंतु स्पर्शन इंद्रिय के विषय होने से इन्हें स्पर्शगुण के पर्यायरूप उपचार से माना है ।
प्रश्न 58―प्रकाश भी चक्षुरिंद्रिय का विषय होने से रूप गुण का पर्याय माना जाना चाहिए?
उत्तर―प्रकाशरूप गुणा ही काला, पीला, नीला, सफेद इन पाँच पर्यायों से भिन्न है । प्रकाश निमित्त के सद्भाव को पाकर बनता और नष्ट होता है किंतु रूप की पर्यायें इस तरह न बनती न नष्ट होती हैं । अत: प्रकाश द्रव्यपर्याय ही है ।
प्रश्न 59―स्कंध होने पर क्या परमाणु की स्वभावव्यंजन पर्याय का बिल्कुल अभाव हो जाता है?
उत्तर―शुद्धनय से याने स्वभावदृष्टि से स्कंधावस्था में भी परमाणु के अंतःस्वभावव्यंजनपर्याय है, किंतु स्निग्धत्व रूक्षत्व विभाव के कारण स्वास्थ्यभाव (अपने में ही रहे ऐसे भाव) से भ्रष्ट होकर परमाणु विभावव्यंजनपर्याय रूप हो जाते हैं । जैसे शुद्ध (स्वभाव) दृष्टि से संसारावस्था में भी अंतजीव के स्वभावव्यंजनपर्याय (सिद्धस्वरूप) है, किंतु रागद्वेष विभाव के कारण स्वास्थ्यभाव से भ्रष्ट होकर मनुष्य, तिर्यंच आदि विभावव्यंजन पर्यायरूप हो रहा है ।
प्रश्न 60―इस गाथा से हमें किस शिक्षा पर ध्यान ले जाना चाहिये?
उत्तर―विभावव्यंजन पर्याय होने पर भी उस पर्याय को गौणकर मात्र परमाणु पर लक्ष्य देकर वहाँ केवल शुद्ध प्रदेशरूप परमाणु का ध्यान करना चाहिये और इसी प्रकार मनुष्यादि विभावव्यंजन पर्याय होने पर भी उस पर्याय को गौण कर मात्र शुद्ध जीवास्तिकाय पर लक्ष्य देकर वहाँ शुद्धजीवास्तिकाय का ध्यान करना चाहिये ।
इस प्रकार पुद्गल द्रव्य का वर्णन करके अब धर्मद्रव्य का वर्णन किया जाता है―