वर्णीजी-प्रवचन:पुरुषार्थसिद्धिउपाय - श्लोक 129
From जैनकोष
रात्रौ भुज्जानानां यस्मादनिवारिता भवति हिंसा ।
हिंसाविरतैस्तमात्त्यक्तव्या रात्रिभुक्तिरपि ।।129।।
रात्रिभोजन में अनिवारित हिंसा होने से रात्रिभोजन के त्याग का कर्तव्य―शांति अहिंसा में है और क्लेश हिंसा में है, इस आधार पर श्रावकाचार का वर्णन चल रहा है । वास्तविक अहिंसा उसे कहते हैं कि जब आत्मा में सम्यग्ज्ञान का प्रकाश हो, अपने आत्मा के सहज निजी स्वरूप का विश्वास हो और रागादिक क्रोध, मान, माया, लोग, विशेष, कषाय, शल्य, माया, मिथ्या, निदान―इन सब विकारों से रहित हुआ किसी जीव के प्रति, किसी पर के प्रति इष्ट अनिष्ट बुद्धि न हो, ऐसा शांत परिणाम हो उसे अहिंसा कहते हैं । लोक में जो दूसरे जीवों की हिंसा का नाम हिंसा कहा जाता है । वह हिंसा इसलिए कही जाती है कि चूंकि सताने वाले ने खुद अपना परिणाम बिगाड़ा तो खुद के परिणाम बिगड़ने का नाम हिंसा है और खुद के परिणाम न बिगड़े, विशुद्ध रहें उसका नाम अहिंसा है । बाहर की बातों से हिंसा और अहिंसा का निर्णय नहीं है, यह जैन शासन का एक मूल आदेश है, इसमें कोई व्यवस्था भंग नहीं होती, क्योंकि जो लोग दूसरे को सताते हैं वे अपना परिणाम बिगाड़ लेते हैं तब सताते हैं । पर दूसरे का दिल दुःख गया इसलिए हिंसा लगी हो यह बात जैन शासन में नहीं है । किंतु खुद का परिणाम उसने बिगाड़ा इसलिए हिंसा लगी । तभी तो किसी को सताने का कोई परिणाम करे और सता न सके तो भी हिंसा है और किसी को सताने का परिणाम न करे दूसरा खुद भूल से भ्रम से अपनी कल्पना से दुःखी हो जाये तो भी अहिंसा है । जैसे साधुजनों को देखकर बहुत से दुष्ट लोग दुःखी होते हैं तो इससे साधु को हिंसा नहीं हैं । इस संबंध में बहुत कुछ वर्णन करने के याद इस गाथा में यह वर्णन कर रहे हैं कि जो रात्रि को खाते हैं उनको नियम से हिंसा होती है । इसलिए जो हिंसा के त्यागी हैं उन्हें चाहिए कि रात्रि भोजन का वे पूरा त्याग करें । अब किस तरह रात्रि भोजन में हिंसा लगती है उसका वर्णन आगे अब विस्तार से किया जायेगा । रात्रि में भोजन करने वाले का परिणाम वैसा रहता है और उस रात्रि भोजन की क्रिया में बाहर में जीवों की कितनी हिंसा होती है? इन दोनों बातों पर दृष्टि दी जाये तब यह बात सही आयेगी कि रात्रि भोजन करने में नियम से हिंसा है । हिंसा की दृष्टि से जो रात्रि में भोजन करने में हिंसा है तो वैसी हिंसा रात्रि को भोजन बनाने में है । अब किस प्रकार भाव हिंसा होती है रात्रि भोजन में उसके संबंध में कहते हैं ।