वर्णीजी-प्रवचन:पुरुषार्थसिद्धिउपाय - श्लोक 157
From जैनकोष
इति य: षोडशयाभान् गमयति परिमुक्त सकलसावद्य: ।
तस्य तदानीं नियतं पूर्णमहिंसा व्रतं भवति ।।157।।
षोडशयाम प्रोषधोपवासी के अहिंसाव्रत का वर्णन―इस प्रकार जो जीव समस्त पाप क्रियावों को छोड़कर 16 प्रहर धर्मध्यान में व्यतीत करता है उस पुरुष के उतने समय तक तो संपूर्ण अहिंसा व्रत है, आरंभ का त्याग कर दिया, परिग्रह से चित्त हटा दिया, एकांत में बस रहा है, तो उसके ये 16 प्रहर अहिंसा व्रत ही रहा । कोई उसने ऐसा विकल्प नहीं बनाया जो पाप क्रिया के हों, दूसरे के नुकसान पहुंचाने वाले हों या आरंभ के हों, किसी भी प्रकार के विकल्प नहीं रक्खे अतएव उसके अहिंसाव्रत है । जितने भी व्रत नियम पाले जाते हैं धर्म के निमित्त से उन सबमें यह शिक्षा लेना है कि अहिंसाव्रत की सिद्धि हो और अहिंसा नाम किसका है? अपने आत्मा की हिंसा न होने का, ज्ञानदर्शन का घात न होने का और जहाँ ज्ञानदर्शन का घात हुआ, विकास रुका तो उसका नाम हिंसा है ꠰ तो प्रोषधोपवास में ऐसी चर्या बतायी गई है कि जिन धार्मिक कार्यों में आत्मा के ज्ञानदर्शन गुण का विकास हो सके ऐसा अवकाश मिले ꠰ तो प्रोषधोपवास व्रत करने वाले पुरुष ने 16 प्रहर तक अहिंसा व्रत की सिद्धि की ꠰