वर्णीजी-प्रवचन:पुरुषार्थसिद्धिउपाय - श्लोक 61
From जैनकोष
मद्यं मासं क्षौद्रं पंचोदुंबरफलानि यत्नेन ।
हिंसाव्युपरतिकामैमोंक्तव्यानि प्रथममेव ।।61।।
हिंसापरिहारेच्छ जनों को मद्य मांस मधु व उदंबरफलों को त्यागने का उपदेश―हिंसा त्याग करने की कामना वाले पुरुषों को प्रथम ही यत्नपूर्वक मद्य, मांस और शहद तथा 5 उदंबर फलों का त्याग करना चाहिये । पहिला है अभक्ष्य भक्षण । त्याग करने का मूल आधार है हिंसा का परिहार और दूसरी बात नहीं । अमुक चीज न खाना, इसका आधार है हिंसा का परिहार । शराब में तो हिंसा है, शराब सड़ाकर बनाई जाती है । उसमें बहुत से कीट मरते हैं । मांस तो प्रत्यक्ष हिंसा है ही । शहद में भी प्रत्यक्ष हिंसा है । जरा विचार तो करो कि वह शहद है क्या चीज? शहद मक्खियों का दमन और विष्टा ही तो है । तो जो वमन है उसमें स्वयं अनेक जीव उत्पन्न होते रहते हैं । तो जो शहद चीज है वह स्वयं एक ऐसी चीज है जिसमें अनेक जीव उत्पन्न होते हैं । मांस तो किसी के घात का होता है और शहद किसी के घात से नहीं हुआ करता और जो जीव उत्पन्न होते रहते हैं वे मरते हैं तो इसमें हिंसा का दोष है और 5 जो उदंबर फल है, ऊमर, कठूमर वगैरह, इनमें तो कोई प्रत्यक्ष जीव देख भी सकता है । जो फल फूल के बिना काठ में से निकलता है वह उदंबर फल कहलाता है । इनमें चतुरिंद्रिय जीव तक स्वयं उत्पन्न होते हैं । उन्हें फोड़ो तो उनके अंदर कीड़े निकलते भी हैं । इन 8 चीजों का त्याग करना यही 8 मूल गुण कहलाते हैं । मद्य, मांस, मधु का त्याग, उदंबर का त्याग और देवदर्शन, जीवदया, रात्रिभोजन त्याग और अनछने जल का त्याग । ये 8 मूल गुण हुए । उदंबरों को 5 को एक में ले ले तो चार हुए व चार अन्य बड़े, इस तरह भी 8 मूल गुण हैं―मद्य, मांस और मधु त्याग और पंचमहाव्रतों का पालन करना यों भी 8 मूल गुण हुए । जो ऊंची योग्यता वाले श्रावक हैं वे पंच अणुव्रत पालते हैं, जो मध्यमी कक्षा वाले हैं वे 8 मूल गुणों का पालन करते हैं और जो जीव निम्न श्रेणी के हैं उनके लिए साधारण 8 मूल गुण
धर्मपालन में अहिंसा का आधार―यह एक चारित्र का अधिकार चल रहा है । अब इस चारित्राधिकार में चारित्र शुरू करते हैं और चारित्र में श्रावकों का चारित्र शुरू करते हैं । यह प्रथम श्लोक है अष्ट मूल गुण का पालनकरना । इसकी भूमिका में कई जगह अहिंसा की बात कही गई है क्योंकि इस चारित्र का आधार है हिंसा का परिहार । आत्महिंसा का परिहार, परहिंसा का परिहार, यही चारित्र है । तो हिंसा रूप में बहुतसी बातें बताकर यह सिद्ध किया है कि जो अपना परिणाम मलिन हुआ वह हिंसा है । बाह्य में जो हिंसा है वह मलिन परिणामपूर्वक होती है इसलिये हिंसा कही जाती है ꠰ यह सब वर्णन करके चारित्र के रूप में मोटे अभक्ष्य की बात कही जाती है । इन 8 बातों में लोगों को एक शहद पर जल्दी श्रद्धा नहीं होती है । उग्र का भी विवरण होगा । यहाँ सर्वप्रथम शराब में क्या दोष है उसे बताते हैं ।