वर्णीजी-प्रवचन:पुरुषार्थसिद्धिउपाय - श्लोक 93
From जैनकोष
असदपि हि वस्तुरूपं यत्र परक्षेत्रककालभावैस्तैः ।
उद्भाव्यते द्वितीयं तदनृतमस्मिन् यथास्ति घट: ।।93꠰꠰
असत्यविधिनामक द्वितीय असत्यवचन―जहाँ जौ चीज नहीं है वहां उस चीज को ‘है’ कह देना, यह असत्य का दूसरा भेद है पहिले असत्य का नाम था सत्यनिषेध और इस दूसरे असत्य का नाम है असत्यविधि । जो नहीं है उसकी विधि बताना सो यह दूसरा असत्य हो गया । जैसे यहां पुस्तक नहीं है और पूछे कि अमुक पुस्तक है? तो वह कहता है कि है, तो जो चीज असत् है उसका विधान करे, वह असत्य विधि नाम का दूसरा असत्य है । तीसरे असत्य का भेद है मिथ्या वचन ।