वर्णीजी-प्रवचन:मोक्षपाहुड - गाथा 32
From जैनकोष
इय जाणिऊण जोई ववहारं चयइ सव्वहा सव्वं ।
झायइ परमप्पाणं जह भणिय जिणवरिंदेहिं ꠰꠰32।।
योगी को व्यवहारविरति व परमात्मत्वध्यान का उपदेश―उक्त गाथा में जैसे बताया है कि व्यवहार में उमंग रखने वाला आत्मा कार्य से गिर जाता है और व्यवहार में उमंग न रखने वाला आत्मा कार्य में बढ़ता है, सो ऐसा जानकर योगी पुरुष व्यवहार को सर्वथा त्याग देते हैं । जिस योगी ने सर्वपरिग्रह का त्याग किया, गात मात्र ही जिसका परिग्रह समझ लीजिए, परिग्रह तो नहीं है, केवल शरीरमात्र ही जहाँ रह गया है ऐसे योगी भाव-श्रमण इस आत्मतत्त्व की ही सदैव धुन रखते हैं और अपनी ऐसी प्रतीति रखते हैं कि यह मैं सबसे निराला केवल चेतनामात्र हूँ । सो उसने सर्वप्रकार के व्यवहार को तजने की ठान ली । सो वही योगी परमात्मा का ध्यान करता है, परमात्मतत्त्वसहज परमात्मतत्त्व, और कार्य-परमात्मतत्त्व इन दो रूपों में प्रयोग करना है, कार्यपरमात्मतत्त्व तो अरहंत और सिद्ध का स्वरूप है रागद्वेषरहित केवल जाननहार और सहजस्वरूप है केवल ज्ञानस्वरूप, ज्ञानमात्र । ऐसा योगी परमात्मा का ध्यान करता है, हम आपका शरण है शुद्ध तत्त्व का उपयोग करना, क्योंकि किन्हीं भी विषयों पर किया हुआ उपयोग आश्रयभूत कारण मिल जाने से व्यक्त विकार बना है और विषय का आश्रय छोड़कर मात्र ज्ञानतत्त्व का आश्रय रखने वाला योगी अपने स्वभाव में तृप्त रहता है । सो सर्व व्यवहार को तजकर यह योगी परमात्मा का ध्यान करता है । जगत् के जितने भी जीव हैं उनकी वर्तमान परिस्थिति तीन प्रकार के आत्मावों में से किसी आत्मा की है―बहिरात्मा, अंतरात्मा और परमात्मा ꠰ बहिरात्मा तो वह है जो बाहर में आत्मा समझे, अपने स्वरूप से अलग भिन्न अन्य तत्त्वों में अपना सत्त्व समझे, यह मैं हूँ, वह है बहिरात्मा, भूला हुआ, मूढ़, अज्ञानी, मोही, अपनी सुध नहीं है उसे । और, अंतरात्मा कहलाता है अंतःस्वरूप को आत्मा मानना । यह ज्ञानी है, सम्यग्दृष्टि है, अपने आपका जो सहज चैतन्यस्वरूप है उस रूप अपने आपको मानता है । और, परमात्मा उत्कृष्ट आत्मा, जहाँ ज्ञान और आनंद उत्कृष्ट प्रकट हुआ है ऐसे आत्मा को परमात्मा कहते हैं । सो बहिरात्मा बने रहने में संसारभ्रमण है, संसार के संकट हैं, अंतरात्मा होना परमात्मा बनने का उपाय है । परमात्मतत्त्व का ध्यान करता हुआ अंतरात्मा निर्दोषता की ओर बढ़ता है और परमात्मा आत्मा की सर्वोत्कृष्ट दशा है । जहाँ पूर्ण ज्ञान और पूर्ण आनंद प्रकट हुआ है, तो परमात्मतत्त्व का ध्यान करने का वहाँ अनुरोध किया है, किसको ? अंतरात्मा मुनि को ।