वर्णीजी-प्रवचन:मोक्षशास्त्र - सूत्र 7-35
From जैनकोष
सचित्तसंबंधसंमिश्रामिषवदुष्पक्वाहारा: ।।7-35।।
(207) भोगोपभोगपरिमाणशिक्षाव्रत नामक शील के अतिचार―भोगोपभोग परिमाण व्रत के 5 अतिचार इस प्रकार है―[1] सचित्त वस्तु का प्रयोग करना सचित्त नाम का प्रथम अतिचार है । [2] सचित्त संबंध सचित्त पदार्थ से संसर्ग की हुई वस्तु का उपयोग करना भोगोपभोग परिमाण व्रत का दूसरा अतिचार है । [3] सचित्तसम्मिश्र―सचित्त पदार्थ का अचित्त में मेल कर देना यह तृतीय अतिचार है । द्वितीय अतिचार में तो सचित्त का केवल संसर्ग ही था, किंतु इस तृतीय अतिचार में सचित्त सूक्ष्म जंतुओं से भी आभार मिश्रित हो गया कि जिसका विभाग ही नहीं किया जा सकता है । प्रमाद के कारण या मोह के कारण क्षुधा आदि से पीड़ित व्यक्ति जल्दी मचाता है भोजन-पान करने में, सो वहाँ सचित्त आदिक का संबंध मिश्रण या रख देना आदिक प्रवृत्तियां हो जाती है । [4] अमिषव―जो उत्तेजक पदार्थ हैं उनका भोजन करना अमिषव नाम का अतिचार है । [5] दुष्पक्वाहार―जो भोजन अच्छी तरह नहीं पकाया गया वह दुष्पक्वाहार कहलाता है । दुष्पक्वाहार करने से इंद्रियां मत्त हो जाती है और ऐसे सचित्त आदिक के प्रयोग से इन सभी के प्रयोग से जो अतिचार में बताया गया है, शारीरिक बाधा भी होती है, वायु आदिक दोष का प्रकोप हो जाता, फिर उसका प्रतिकार करना पड़ता, उसके आरंभ में पाप होते, इस कारण सचित्त संबंध वाले आदि जितने भी हेय आहार बताये गए हैं उनका करना ये भोगोपभोग परिमाण व्रत के अतिचार कहलाते हैं । अब अतिथिसम्विभाग व्रत के अतिचार कहते हैं ।