वर्णीजी-प्रवचन:मोक्षशास्त्र - सूत्र 9-16
From जैनकोष
वेदनीये शेषा: ।। 9-16 ।।
वेदनीय कर्म के उदय में संभावित ग्यारह परीषहों का निर्देश―अभी तक जिन परीषहों का वर्णन किया गया है वे कौन सी परीषह किस कर्म के उदय से हुए, तो उन वर्णित परीषहों के अतिरिक्त जो शेष बचे हैं 12 परीषह वे वेदनीय के उदय से हुए हैं । याने वेदनीय कर्म का उदय होने पर ये परीषहें बनते हैं जो शेष रह गईं । वे हैं क्षुधा, पिपासा, शीत उष्ण, दंशमशक, चर्या, शय्या, वध, रोग, तृणस्पर्श और मल । इन नामों से ही यह जाहिर होता है, कि इनमें खेद का परिणाम होता है, और वे असातावेदनीय के उदय से संभव है । सो जहाँ तक वेदनीय का उदय है वहाँ तक ये परीषहें समझना चाहिए । इसी आधार पर जिनेंद्र में 11 परीषहें हैं, यह कहने का साहस हुआ है । वहाँ परीषह एक भी नहीं है, विकार रंच भी नहीं है । खेद कैसे हो सकता है? जहाँ पूर्ण वीतरागता है और सर्वज्ञता प्रकट हुई है ऐसे परम पवित्र परमात्मा के परीषहों का अवसर ही क्या है । पर बताने का प्रयोजन यह है कि यह जान जायें कि वेदनीय का उदय यहाँ तक है । तो ऐसे यह 11 परीषह वेदनीय का उदय होने पर कहा गया है । अब यहां एक जिज्ञासा होती है कि परीषह तो 22 कहे गए, लेकिन किसी मुनि के एक समय में 12 परीषह हो सकते हैं क्या? अथवा कितने होते हैं? इसका समाधान करने के लिये सूत्र कहते हैं ।