वर्णीजी-प्रवचन:मोक्षशास्त्र - सूत्र 9-37
From जैनकोष
शुक्ले चाद्ये पूर्वविद: ।। 9-37 ।।
आदि के दो शुक्लध्यानों के स्वामी का निर्देश―आदि के दो शुक्लध्यान पूर्वविद के अर्थात श्रुतकेवली के होते हैं । यह शुक्लध्यान श्रुतकेवली के है । इस कथन से यद्यपि एक प्रसंग में विरोध आता है, जहां यह कहा गया कि अष्ट प्रवचन मात्रिका का ज्ञान हो जिस मुनि के अर्थात् विशेष ज्ञान नहीं है, पर प्रायोजनिक ज्ञान है थोड़ा, तो वह मुनि भी मोक्ष जा सकता है, किंतु यहाँ कह रहे हैं कि शुरु-शुरु के दो शुक्लध्यान श्रुतकेवली के होते हैं तो फिर कैसे वे मोक्ष गए? तो इस विषय में यह जाहिर होता है कि जो मुनि श्रेणी भांड से पहले श्रुतकेवली हैं उनके विषय में तो यह प्रसिद्ध है कि वे श्रुतकेवली हैं और मोक्ष गए, पर जिन मुनियों के श्रेणियों से पहले श्रुतकेवलीपना नहीं है, थोड़ा ही ज्ञान है, आठ प्रवचन माता का ही ज्ञान है तो वह भी श्रेणी भांड है और श्रेणी में जो ध्यान बढ़ता है उसके प्रताप से श्रुतज्ञानावरण में शिथिलता और निर्जरा तो होती ही है, तो उनके पूर्ण श्रुतज्ञान पैदा हो जाता है, पर वह समय बहुत थोड़ा है और उसके बाद उनके कोई व्यवहार भी नहीं होता है । श्रेणी की, समाधि की, और केवलज्ञान हो जायेगा इसलिए यह जाहिर नहीं हो पाता कि उनके भी पूर्ण श्रुतज्ञान हो जाया करता है । इस प्रकार श्रुतकेवली के आदि में दो शुक्लध्यान बताये गये हैं । इस सूत्र में च शब्द भी आया है, जिससे यह प्रकट होता है कि श्रुतकेवली के धर्मध्यान भी होता है, किंतु यह धर्मध्यान श्रेणी से पहले है । श्रुतकेवली तो पहले भी रहता है, पर श्रेणी में जो भव्य आत्मा है उसके धर्मध्यान नहीं, किंतु शुक्लध्यान ही है अब अंतिम दो शुक्लध्यानों का स्वामी बतलाते है ।