वर्णीजी-प्रवचन:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 85
From जैनकोष
अल्पफलबहुविधाता-न्मूलकमार्द्राणि श्रंगवेराणि ।
नवनीतनिंबकुसुमं कैतकमित्येवभवहेयम् ।। 85 ।।
अल्पफलबहुविधाता-न्मूलकमार्द्राणि श्रंगवेराणि ।
नवनीतनिंबकुसुमं कैतकमित्येवभवहेयम् ।। 85 ।।