वर्णीजी-प्रवचन:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 88
From जैनकोष
भोजन-वाहन-शयन-स्तन-पवित्रांगरागकुसुमेषु ।
तांबूलवसनभूषण-मन्मथसंगीत-गीतेषु ।। 88 ।।
भोगोपभोग परिमाण नामक व्रत में रोज ही नियम किया जाता है―यम रूप तो है ही पर नियम भी किया जाता है तो वे किन विषयों के नियम होते हैं उनको उदाहरण रूप में बतलाते हैं । (1) भोजन आज इतनी बार करुंगा, इतने अन्न, इतने रस लूँगा । इतनी चीजें खाऊंगा, इस प्रकार भोजन की सीमा में नियम होता है । (2) वाहन मैं आज इतनी सवारियों का उपयोग करुंगा । हाथी, घोड़ा, ऊँट, बैलगाड़ी, नाव, जहाज आदिक जिनमें बैठकर गमन हो वे सब वाहन हैं कोई पालकी में चले वह भी एक वाहन है । इन वाहनों का नियम करना कि आज मैं इतने वाहनों का उपयोग करुंगा और उससे अधिक का उपयोग न करुंगा । यों काल की मर्यादा लेकर ऐसा वाहन का नियम किया जाता है । (3) तीसरा है शयन नियम । पलंग, खाट आदि शैया का नियम करना । आज मैं पलंग पर शयन करुंगा, या तखत पर शयन करुंगा या भूमि पर शयन करुंगा ऐसे नियम को शयन का नियम कहते है । (4) स्नान―आज मैं एक बार स्नान करुंगा या स्नान न करुंगा, जिस दिन उपवास किया उस दिन स्नान नहीं किया जाता, या अन्य किसी स्थिति में स्नान के बार का नियम रखना यह स्नान का नियम है । (5) पांचवां है पवित्रांगराग याने अंग में चंदन, कपूर आदिक का लेप करना मैं एक बार लेप करुंगा, इससे आगे न करुंगा आदि प्रकार से नियम लेना पवित्रांगराग नियम है । (6) एक है कुसुम का नियम―माला पहिनना या अन्य आभरण आदिक धारण करना यह कुसुम संबंधित नियम हैं । (7) एक नियम है तांबूल―इसमें पान खाने का नियम लिया जाता है कि आज मैं इतनी बार पान खाऊंगा । यहाँ यह बात जानना कि व्रती श्रावक पान का नियम ले-ले तो इसके मायने हैं कि पान स्वरूप से अभक्ष्य नहीं है । अरे पान तो स्वरूप से ही अभक्ष्य है । इसके अतिरिक्त इलायची लौंग आदिक जो खाने की चीजें नहीं हैं, केवल एक मुख सुधारने की, स्वाद लेने की है उन सबका इसमें नियम होता है । (8) एक होता है वसन अर्थात् वस्त्र का नियम, मैं इससे अधिक वस्त्र न पहनूँगा, ऐसा दिन का नियम लेकर करता है । (1) एक होता है आभूषण का नियम―मैं आज इतने से अधिक आभूषण न पहनूँगा, इस प्रकार के नियम कर लेना आभूषण नियम है । (10) एक होता है मन्मथ नियम―याने आज, मैं काम सेवन नहीं करुंगा इस प्रकार का नियम लेना मन्मथ नियम है । (11) एक होता है संगीत नियम―आज मैं न तो संगीत सुनाऊंगा और न खुद सुनूँगा या एक बार सुनूँगा आदि प्रकार से नियम लेना संगीत नियम है । (12) एक होता है गीतनियम―आज मैं इतनी देर गीत सुनूँगा इससे अधिक नहीं इस प्रकार का नियम लेना गीत नियम है ।