वशिष्ट
From जैनकोष
हरिवंशपुराण/33/श्लोक - एक तापस था ।46। राज्य दरबार में सर में से मछलियाँ निकलने के कारण लज्जित हुआ ।47-57 । वीरक मुनि से दीक्षा ले एकलबिहारी हो गया ।58-74। एक महीने का उपवास धारा । पीछे पारणावश नगर में गया तो आहार लाभ न हुआ, क्योंकि राजा उग्रसेन ने स्वयं आहार देने के लिए प्रजा को आहार दान करने को मना कर दिया था और काम में व्यस्त होने के कारण स्वयं भी आहार न दे सका था । तब वह साधु निदानपूर्वक मरकर उसी राजा के घर कंस नाम का पुत्र हुआ, जिसने उसको बंदी बनाकर बहुत दुःख दिया ।75-84 । यह कंस का पूर्व का भव है । - देखें कंस ।