विजयावली
From जैनकोष
काकंदी नगरी के राजा रतिवर्धन के मंत्री सर्वगुप्त की स्त्री । इसने राजा को मारने का मंत्री का कूट रहस्य राजा से प्रकट कर दिया था । यह मंत्री की अपेक्षा राजा को अधिक चाहती थी । इसके कहने से राजा सावधान रहने लगा । इसके राजा से भेद प्रकट कर देने से इसका पति इससे द्वेष करने लगा । फलस्वरूप देह न तो राजा की हो सकी और न पति की ही यह ज्ञान इसे होते ही इसने शोकमुक्त होकर अकाम तप किया । आयु के अंत में यह मरकर राक्षसी हुई । तीव्र वैर-वश इसने रतिवर्धन पर उसकी मुनि अवस्था में घोर उपसर्ग किये थे । पद्मपुराण - 108.7-11, [ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_108#35|35-38]]