विद्याधरवंश
From जैनकोष
पौराणिक चार महावंशों में तीसरा महावंश । विद्याधर नमि इस देश का प्रथम राजा था । नमि के पश्चात् उसका पुत्र रत्नमाली राजा हुआ । इसके पश्चात् रत्नवज्र, रत्नरथ, रत्नचित्र, चंद्ररथ, वज्रजंघ, वज्रसेन, वज्रदंष्ट्र, वज्रध्वज, वज्रायुध, वज्र, सुवज्र, वज्रभूत, वज्राभ, वज्रबाहु, वज्रसंज्ञ, वज्रास्य, वज्रपाणि, वज्रजातु, वज्रवान्, विद्युन्मुख, सुवक्त्र, विद्युद्दंष्ट्र, विद्युत्वान्, विद्युदाभ, विद्युद्वेग, वैद्युत राजा हुए । इन राजाओं के पश्चात् विद्युद्दृढ़ राजा हुआ । यह दोनों श्रेणियों का स्वामी था । यह दृढ़रथ पुत्र को राज्य सौंपकर तप करते हुए मरकर स्वर्ग गया । इसके पश्चात् अश्वधर्मा, अश्वायु, अश्वध्वज, पद्मनिभ, पद्ममाली, पद्मरथ, सिंहयान, मृगोद्धर्मा, सिंहसप्रभु, सिंहकेतु, शशांकमुख, चंद्र, चंद्रशेखर, इंद्र, चंद्ररथ, चक्रधर्मा, चक्रायुध, चक्रध्वज, मणिग्रीव, मण्यंक, मणिभासुर, मणिस्यंदन, मण्यास्य, विंबोष्ठ, लंबिताधर, रक्तोष्ठ, हरिचंद्र, पूश्चंद्र, पूर्णचंद्र, बालेंदु, चंद्रचूड, व्योमेंदु, उडुपालन, एकजुड, द्विचूड, त्रिचूड, वज्रचूड, भूरिचुड, अर्कचूड, वह्निजटी, वह्नितेज, इसी प्रकार इस वंश में और भी राजा हुए । इनमें अनेक नृप पुत्रों को राज्य सौंपते हुए कर्मों का क्षय करके सिद्ध हुए हैं । पद्मपुराण - 5.3, 16-25, 47-55