विवेचन
From जैनकोष
वस्तु विवेचन विधि
कषायपाहुड़ 1/1-1/2/7/3 जुत्तिविरहियगुरुवयणादो पयमाणस्स पमाणाणुसारित्तविरोहादो। =जो शिष्य युक्ति की अपेक्षा किये बिना मात्र गुरुवचन के अनुसार प्रवृत्ति करता है उसे प्रमाणानुसारी मानने में विरोध आता है। न्यायदीपिका/1/2/4 इह हि प्रमाणनयविवेचनमुद्देशलक्षणनिर्देशपरीक्षाद्वारेण क्रियते। अनुद्दिष्टस्य लक्षणनिर्देशानुपपत्ते:। अनिर्दिष्टलक्षणस्य परीक्षितुमशक्यत्वात् । अपरीक्षितस्य विवेचनायोगात् । लोकशास्त्रयोरपि तथैव वस्तुविवेचनप्रसिद्धे:। =इस ग्रंथ में प्रमाण और नय का व्याख्यान उद्देश्य, लक्षणनिर्देश तथा परीक्षा इन तीन द्वारा किया जाता है। क्योंकि विवेचनीय वस्तु का उद्देश्य नामोल्लेख किये बिना लक्षणकथन नहीं हो सकता। और लक्षणकथन किये बिना परीक्षा नहीं हो सकती, तथा परीक्षा हुए बिना विवेचन अर्थात् निर्णयात्मक वर्णन नहीं हो सकता। लोक व्यवहार तथा शास्त्र में भी उक्त प्रकार से ही वस्तु का निर्णय प्रसिद्ध है।
= देखें न्याय ।
आगम व अध्यात्म पद्धति
का./ता.वृ./१७३/२५५/११ अर्थपदार्थानामभेदरत्नत्रयप्रतिपादका-नामनुकूलं यत्र व्याख्यानं क्रियते तदध्यात्मशास्त्रं भण्यते... वीतराग-सर्वज्ञप्रणीतषड्द्रव्यादिसम्यक्श्रद्धानज्ञानव्रताद्यनुष्ठानभेदरत्नत्रयस्वरूपं यत्र प्रतिपाद्यते तदागमशास्त्रं भण्यते। = जिसमें अभेद रत्नत्रय के प्रतिपादक अर्थ और पदार्थों का व्याख्यान किया जाता है उसको अध्यात्म शास्त्र कहते हैं।... वीतराग सर्वज्ञ प्रणीत छः द्रव्यों आदि का सम्यक्श्रद्धान, सम्यक्ज्ञान, तथा व्रतादि के अनुष्ठानरूप रत्नत्रय के स्वरूप का जिसमें प्रतिपादन किया जाता है उसको आगम शास्त्र कहते हैं।
–देखें पद्धति ।