शीलकल्याणक
From जैनकोष
एक व्रत । मनुष्यणी, देवांगना, अचित्ता (चित्रस्था) और तिर्यंचणी इन चार प्रकार की स्त्रियों का पाँचों इंद्रियों और मन, वचन, काय तथा कृत, कारित-अनुमोदना रूप नौ कोटियों से किया गया एक सौ अस्सी (4 × 5 = 20 × 9 = 180) प्रकार का त्याग ब्रह्मचर्य-महाव्रत है । इस व्रत में इस प्रकार एक सौ अस्सी उपवास और इतनी ही पारणाएँ की जाती है । इसमें क्रमश: एक उपवास और एक पारणा करनी चाहिए । हरिवंशपुराण - 34.103, 112