श्रीदत्त
From जैनकोष
सिद्धांतकोष से
- भूतकालीन सप्तम तीर्थंकर - देखें तीर्थंकर - 5।
- भगवान् महावीर की मूल परंपरा में लोहाचार्य के पश्चात एक अंगधारी। समय - वी.नि.565-585 (ई.38-58)। (देखें इतिहास - 4.4)।
- एक प्रसिद्ध जैन तार्किक दिगंबराचार्य जिनका नामोल्लेख आ.विद्यानंदि ने श्लोकवार्तिक में किया और आ.पूज्यपाद (ई.श.6) तक ने जिनका स्मरण किया। कृति - जल्प निर्णय। समय - वि.श.4-5 (ई.श.4 का उत्तरार्ध)। (तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परंपरा/2/449) ( सिद्धि विनिश्चय/ प्रस्तावना 19/पं.महेंद्रकुमार)।
पुराणकोष से
(1) भगवान् महावीर की मूल परंपरा में लोहाचार्य के पश्चात् हुए चार आचार्यों में दूसरे आचार्य । विनयदत्त इनके पूर्व तथा शिवदत्त और अर्हद्दत्त बाद में हुए थे । ये चार अंग-पूर्वों के एक देश ज्ञाता थे । वीरवर्द्धमान चरित्र 1. 50-52
(2) समंतभद्र के एक उत्तरवर्ती आचार्य । महापुराण 1. 44-45
(3) मृणालवती नगरी का एक सेठ । इसकी सेठानी विमलश्री और पुत्री रतिवेगा थी । महापुराण 46. 105, पांडवपुराण 3. 189-190
(4) विद्याधर श्रीविजय का पुत्र । श्रीविजय इसे राज्य सौंपकर दीक्षित हो गया था । महापुराण 62.408, पांडवपुराण 4.243-245
(5) भरतक्षेत्र के मलय देश में रत्नपुर नगर के वैश्रवण सेठ का पुत्र । इसकी माँ का नाम गौतमी था । महापुराण 67.90-99,
(6) जंबूद्वीप-भरतक्षेत्र की कौशांबी नगरी के राजा सिद्धार्थ का पुत्र । सिद्धार्थ ने इसे राज्य देकर संयम धारण किया था । महापुराण 69.2-4, 11-14