श्वासोच्छ्वास
From जैनकोष
गोम्मट्टसार जीवकांड / जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा 574/1018/11 में उद्धृत
अड्ढस्स अणलस्स य णिरुवहदस्स य हवेज्ज जीवस्स। उस्सासाणिस्सासो एगो पाणोत्ति आहीदो।
= जो कोई मनुष्य `आढ्य' अर्थात् सुखी होई आलस्य रोगादिकरि रहित होइ, स्वाधीनता का श्वासोच्छ्वास नामा एक प्राण कहा है इसीसे अंतर्मुहूर्त की गणना होती है।
ज्ञानार्णव अधिकार 29/90-91
षोडशप्रमितः कैश्चिन्निर्णीतो वायुसंक्रमः। अहोरात्रमिते काले द्वयोर्नाड्योर्यथाक्रमम् ।90। षट्शतान्यधिकान्याहुः सहस्राण्येकविंशतिम्। अहोरात्रे नरि स्वस्थे प्राणवायोर्गमागमौ ।91।
= यह पवन है सो एक नाड़ी में नालीद्वयसार्द्धं कहिए अढ़ाई घड़ी तक रहता है, तत्पश्चात् उसे छोड़ अन्य नाड़ी में रहता है। यह पवन के ठहरने के काल का परिमाण है ।89। किन्हीं-किन्हीं आचार्यों ने दोनों नाड़ियों में एक अहोरात्र परिमाण काल में पवन का संक्रम क्रम से 16 बार होना निर्णय किया है ।90। स्वस्थ मनुष्य के शरीर में प्राणवायु श्वासोच्छ्वासका गमनागमन एक दिन और रात्रि में 21600 बार होता है ।91।
- विशेष जानकारी के लिये देखें उच्छ्वास |
- काल का एक प्रमाण विशेष। अपरनाम उच्छ्वास वा नि:श्वास। - देखें गणित - I.1.4।