संन्यास मरण
From जैनकोष
अतिवृद्ध या असाध्य रोगग्रस्त हो जाने पर, अथवा अप्रतिकार्य उपसर्ग आ पड़ने पर अथवा दुर्भिक्ष आदि के होने पर साधक साम्यभाव पूर्वक अंतरंग कषायों का सम्यक् प्रकार दमन करते हुए, भोजन आदि का त्याग करके, धीरे-धीरे शरीर को कृश करते हुए, इसका त्यागकर देते हैं। इसे ही सल्लेखना या समाधिमरण कहते हैं।
विशेष जानकारी के लिए देखें सल्लेखना ।