संवास अनुमति
From जैनकोष
मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 415
सावज्ज संकिलिट्ठो ममत्तिभावो दु संवासो ॥415॥
= यदि साधु आहारादि के निमित्त ऐसा ममत्व भाव करे कि ये गृहस्थ लोक हमारे हैं, वह उसके लिए संवास नाम की अनुमति है।
अधिक जानकारी के लिये देखें अनुमति ।