संवृति सत्य
From जैनकोष
राजवार्तिक/1/20/12/75/21 तत्र ....। यल्लोके संवृत्यानीतं वचस्तत् संवृतिसत्यं यथा पृथिव्याद्यनेककारणत्वेऽपि सति ‘पंके जातं पंकजम्’ इत्यादि। .... । =.....। जो वचन लोक रूढ़ि में सुना जाता है वह संवृतिसत्य है, जैसे पृथिवी आदि अनेक कारणों के होने पर भी पंक अर्थात् कीचड़ में उत्पन्न होने से ‘पंकज’ इत्यादि वचनप्रयोग ....।
अधिक जानकारी के लिये देखें सत्य - 6।