संसार से भय उत्पन्न करने वाली कथा । यह आक्षेपिणी, विक्षेपिणी, संवेदिनी और निर्वेदिनी इन चार प्रकार की कथाओं में तीसरे प्रकार की कथा है । इसी को संवेजिनी कहते हैं । महापुराण 1.135-136, देखें संवेजिनी ।
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