समचतुस्रसंस्थान
From जैनकोष
नाम कर्म का एक भेद । इसी से सुंदर शरीररचना होती है । इससे शरीर की लंबाई-चौड़ाई और ऊँचाई हीनाधिक नहीं होती, समविभक्त होती है । चारों और से मनोहर, अंगोपांगों का समान विभाजन इसी से होता है । महापुराण 15.33, 37.28, हरिवंशपुराण - 8.175