सम्यक्त्व लब्धि
From जैनकोष
धवला 1/1,1,1/गाथा 58/64 दाणे लाभे भोगे परिभोगे वीरिए य सम्मत्ते। णव केवल-लद्धीओ दंसण-णाणं चरित्ते य।58। = दान, लाभ, भोग, परिभोग, वीर्य, सम्यक्त्व, दर्शन, ज्ञान और चारित्र ये नव केवललब्धियाँ समझना चाहिए।58। <br
अधिक जानकारी के लिये देखें लब्धि - 1.3।