सर्वानशन
From जैनकोष
भगवती आराधना / मूल या टीका गाथा 209
अद्धाणसणं सव्वाणसणं दुविहं तु अणसणं भणियं।
= अर्धानशन और सर्वानशन ऐसे अनशन तप के दो भेद हैं।
भगवती आराधना / विजयोदयी टीका / गाथा 209/425/14
परित्यागोत्तरकालो जीवितस्य यः सर्वकालः तस्मिन्ननशनं अशनत्यागः सर्वानशनम्। ...चरिमंते परिणामकालस्यांते।
= मरण समय में अर्थात् संन्यास काल में मुनि सर्वानशन तप करते हैं।
अधिक जानकारी के लिये देखें अनशन ।