सर्वौषध ऋद्धि
From जैनकोष
तिलोयपण्णत्ति अधिकार संख्या /४/१०७३ जीए पस्सजलाणिलरीमणहादीणि वाहिहरणाणि। दुक्करवजुत्ताणं रिद्धी सव्वोही णामा ।१०७३।= जिस ऋद्धि के बल से दुष्कर तप से युक्त मुनियों का स्पर्श किया हुआ जल व वायु तथा उन के रोम और नखादिक व्याधि के हरने वाले हो जाते हैं, वह सर्वौषधि नामक ऋद्धि है।
अधिक जानकारी के लिये देखें ऋद्धि - 7।