साध्यसमा
From जैनकोष
न्यायदर्शन सूत्र/भाष्य/5/1/4/288/23 -[मूलसूत्र देखें वर्ण्यसमा ]-क्रियाहेतुगुणयुक्तं किंचिद्गुरु यथा लोष्ट: किंचिल्लघु यथा वायुरेवं क्रियाहेतुगुणयुक्तं किंचित्क्रियावत्स्याद् यथा लोष्ट: किंचिदक्रियं यथात्मा विशेषो वा वाच्य इति। हेत्वाद्यवयवसामर्थ्ययोगी धर्म: साध्यस्तं दृष्टांते प्रसंजत: साध्यसम:। यदि यथा लोष्टस्तथात्मा प्राप्तस्तर्हि यथात्मा तथा लोष्ट इति। साध्यश्चायमात्मा क्रियावानिति कामं लोष्टोऽपि साध्य:। अथ नैवं तर्हि यथा लोष्ट: तथात्मा। एतेषामुत्तरम् । क्रियाहेतुगुण से युक्त पदार्थ कुछ भारी भी होता है जैसे लोष्ट, कुछ हलका भी होता है जैसे वायु, कुछ क्रियावाला होता है, जैसे लोष्ट और कुछ क्रियारहित भी होता है जैसे आत्मा। कुछ और विशेष हो तो कहिए। हेतु आदि अवयव की सामर्थ्य को जोड़ने वाला धर्म साध्य होता है। उसको दृष्टांत में प्रसंग कराने वाले को साध्यसम कहते हैं। उदाहरणार्थ-जैसा लोष्ट है वैसा ही आत्मा है, तब प्राप्त हुआ कि जैसा आत्मा है वैसा ही लोष्ट है। यदि आत्मा का क्रियावान्पना साध्य है तो निस्संदेह लोष्ट का भी क्रियावान्पना भी साध्य है। यदि ऐसा नहीं है तो 'जैसा लोष्ट वैसा आत्मा' ऐसा नहीं कहा जा सकता। ( श्लोकवार्तिक 4/1/33/ न्या.337/473/30 )।