सुखदु:खोपसंयत
From जैनकोष
मूलाचार/140-143 ......142। सुहदुक्खे उवयारो वसहीआहारभेसजादीहिं। तुह्मं अहंति वयणं सुहदुक्खुवसंपया णेया।143। =......।142। सुख-दु:ख युक्त पुरुषों को वसतिका, आहार, औषध आदिकर उपकार करना, तथा मैं और मेरी वस्तुएँ आपकी हैं, ऐसा वचन कहना वह सुखदु:खोपसंयत है।143।
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