स्वगुरु वापि क्रिया
From जैनकोष
महापुराण/38/70-310 आधानं नाम गर्भादौ संस्कारो मंत्रपूर्वक:। पत्नीमृतुमतीं स्नातां पुरस्कृत्यार्हदिज्यया।70। ...अत्रापि पूर्ववद्दानं जैनी पूजा च पूर्ववत् । इष्टबंधसमाह्वानं समाशादिश्च लक्ष्यताम् ।97। ...क्रियाग्रनिर्वृतिर्नाम परानिर्वाणमायुष:। स्वभावजनितामूर्ध्वव्रज्यामास्कनदतो मता।309।
इति निर्वाणपर्यंता: क्रिया गर्भादिका: सदा। भव्यात्मभिरनुष्ठेया: त्रिपंचाशत्समुच्चायात् ।310। 1. .......29. स्वगुरु स्थानावाप्ति क्रिया - गुरु की भाँति स्वयं भी अवस्था विशेष को प्राप्त हो जाने पर, संघ में से योग्य शिष्य को छाँटकर उसे गुरुपद का भार प्रदान करे।172-174।
अधिक जानकारी के लिये देखें संस्कार - 2।