स्वजातिउपचार
From जैनकोष
आलापपद्धति अधिकार 5,9
असद्भूतव्यवहारस्त्रेधा। स्वजात्यसद्भूतव्यवहारो,.....विजात्यसद्भूतव्यवहारो,.....स्वजातिविजात्यसद्भूतव्यवहारो।...उपचरितासद्भूतव्यवहारस्त्रे। स्वजात्यसद्भूतव्यवहारो,.....विजात्य सद्भूत व्यवहारो, स्वजातिविजात्यसद्भूतव्यवहारो,....।5। गुण-गुणिनोः पर्यायपर्यायिणोः स्वभावस्वभाविनोः कारककारकिणोर्भेद सद्भूतव्यवहारस्यार्थः। द्रव्ये द्रव्योपचारः, पर्याये पर्यायोपचारः, गुणे गुणोपचारः, द्रव्ये गुणोपचारः, द्रव्ये पर्यायोपचारः, गुणे द्रव्योपचारः, गुणे पर्यायोपचारः, पर्याये द्रव्योपचारः, पर्याये गुणोपचारः इति नवविधोऽसद्भूतव्यवहारस्यार्थो द्रष्टव्यः। ....सोऽपि संबंधाविनाभावः। संश्लेषसंबंधः, परिणाम-परिणामिसंबंधः, श्रद्धा-श्रद्धेय-संबंधः, ज्ञानज्ञेयसंबंधः, चारित्रचर्यासंबंधश्चेत्यादि सत्यार्थः असत्यार्थः, सत्यार्थासत्यार्थश्चेत्युपचरितासद्भूतव्यवहारनयस्यार्थः।
= भावार्थ - 1. उपचार दो प्रकार का है भेदोपचार और अभेदोपचार। गुणगुणी में भेद करके कहना भेदोपचार है। इसे सद्भूत व्यवहार कहते हैं क्योंकि गुणगुणी का तादात्म्य संबंध पारमार्थिक है। भिन्न द्रव्यों में एकत्व करके कहना अभेदोपचार है। इसे असद्भूत व्यवहार कहते हैं, क्योंकि भिन्न द्रव्यों का संश्लेष या संयोग संबंध अपारमार्थिक है। यह अभेदोपचार भी दो प्रकार का है-संश्लेष युक्त द्रव्यों या गुणों आदि में और संयोगी द्रव्यों या गुणों में। तहाँ संश्लेषयुक्त अभेदको असद्भूत कहते हैं और संयोगी-अभेदको उपचरित-असद्भूत कहते हैं, क्योंकि यहाँ उपचारका भी उपचार करनेमें आता है, जैसे कि धन पुत्रादिका संबंध शरीरसे है और शरीरका संबंध जीवसे। इसलिए धनपुत्रादिको जीवका कह दिया जाता है। 2. गुण-गुणीमें, पर्याय-पर्यायीमें, स्वभाव-स्वभावीमें, कारक-कारकीमें भेद करना सद्भूत या भेदोपचारका विषय है। (विशेष देखें नय - V/5/4-6) 3. एक द्रव्यमें अन्य द्रव्यका, एक पर्यायमें अन्य पर्यायका, एक गुणमें अन्य गुणका, द्रव्यमें गुणका, द्रव्यमें पर्यायका, गुणमें द्रव्यका, गुणमें पर्यायका, पर्यायमें द्रव्यका तथा पर्यायमें गुणका इस तरह नौ प्रकार असद्भूत-अभेदोपचारका विषय है। सो भी स्वजाति-असद्भूत-व्यवहार, विजाति-असद्भूत-व्यवहार, और स्वजाति-विजाति-असद्भूत-व्यवहारके भेदसे तीन-तीन प्रकारका है। 4. अविनाभावी-संबंध कई प्रकारका होता है। जैसे-संश्लेष-संबंध, परिणाम-परिणामी संबंध, श्रद्धा-श्रद्धेय संबंध, ज्ञान-ज्ञेय संबंध, चारित्रचर्या संबंध इत्यादि। ये सब उपचरित-असद्भूत-व्यवहार रूप अभेदोचारके विषय हैं। सो भी स्वजाति-उपचरित-असद्भूत व्यवहार, विजाति-उपचरित-असद्भूत-व्यवहारके भेदसे तीन-तीन प्रकारके हैं। अथवा सत्यार्थ, असत्यार्थ व सत्यासत्यार्थके भेदसे तीन-तीन प्रकार हैं। यथा-1. स्वजाति-द्रव्यमें विजाति-द्रव्यका आरोप, 2. स्वजाति-गुणमें विजाति-गुणका आरोप, 3. स्वजाति पर्यायमें विजाति पर्यायका आरोप. 4. स्वजाति द्रव्यमें विजाति गुणका आरोप, 5. स्वजाति द्रव्यमें विजाति पर्यायका आरोप, 6. स्वजाति गुणमें विजाति द्रव्यका आरोप, 7. स्वजाति गुणमें विजाति पर्यायका आरोप, 8. स्वजाति पर्यायमें विजाति द्रव्यका आरोप, 9. स्वजाति पर्यायमें विजाति गुणका आरोप।
अधिक जानकारी के लिये देखें उपचार - 1.2।