हड्डी
From जैनकोष
धवला पुस्तक 6/1,9-1,28/63/11
पंचवीसकलासयाईं चउरसीदिकलाओ च तिहिसत्तभागेहि परिहीणणवकट्ठाओ च रसो, रसरूवेण अच्छिय रुहिरं होदि। तं हि तत्तिय चेव कालं तत्थच्छिय मांससरूवेण परिणमइ। एवं सेस धादूणं वि वत्तव्वं। एवं मासेन रसो सुक्करूवेण परिणमइ।
= रस से रक्त बनता है, रक्त से मांस उत्पन्न होता है, मांस से मेदा पैदा होती है, मेदा से हड्डी बनती है, हड्डी से मज्जा पैदा होती है, मज्जा से शुक्र उत्पन्न होता है और शुक्र से प्रजा उत्पन्न होती है ।11। 2584 कला 8.4\7 काष्ठा काल तक रस रसस्वरूप से रहकर रुधिर रूप परिणत होता है। वह रुधिर भी उतने ही काल तक रुधिर रूप से रह कर मांस स्वरूप से परिणत होता है। इसी प्रकार शेष धातुओं का भी परिणाम-काल कहना चाहिए। इस तरह एक मांस के द्वारा रस शुक्र रूप से परिणत होता है।
अधिक जानकारी के लिये देखें औदारिक 1.6।